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________________ - - ६०८ :: . . . . . . . . . . . . .मगरले कविनोभयं पश्यतीत्याशयः । तथैव 'मूलं पासह ? संध पासह! किस्म मुलं पश्यति? स्कन्धं शासां वा पश्यति ? भावितारमा. विपन्ने गौतमीये भगवतचतुर्भगधा समाधानमाह शास्त्रकार:-'पउभगो' चतुर्भकी तदुसरं बोध्यम् अर्थात् कधिन्मूलं, कम्वित् स्कन्धं, फश्विदुमयं पश्यति । 'एवं मूलकन्दमत्रा मिलापक्रमेण 'मूलेणं नाव-धीमं संजोएंअन्न' मृटेन मह यावद् बीज संयो. भि देखता है और बाहिरी भागको भी देखता है। तथा कोई एक भावितात्मा अनगार ऐसा भी होता है कि जो वृक्षके न भीतरी भागको देखता है और न पाहिरी भाग कोही देखता है। इस प्रकार से यहां चतुर्भगी जाननी चाहिये । पुनः गौतमने प्रभुसे पूछा 'एवं कि मूलं पास! कंदं पासइ' हे भदन्त ! भावितारमा अनगार वृक्षके मूलको देखता है कि कंदको देखता है-तय प्रभुने इसके उत्तर में भी 'चउभंगो' चतुर्भगी से चारभंगरूप उत्तर जानना चाहिये-अर्थात् कोई भावितात्मा अनगार वृक्षके मूलको देखता है, कोई भावितात्मा अनगार कन्दको देखता है, कोई भावितात्मा अनगार दोनोंको देखता है और कोई भावितात्मा अनगार दोनों को नहीं देखता है। इसी तरह से 'मूलं पासइ, खंचं पासई' इस प्रश्नका भी उत्तर 'चंउभंगों' चतुर्भगी से जानना चाहिये-अर्थात् गौतमने जब प्रभु से ऐसा प्रश्न किया कि हे भदन्त ! कोई भावितात्मा अनगार वृक्षके मूल भाग को देखता है कि स्कन्ध-शाखाको देखता है। तो प्रभुने इसके उत्तर में છે અને બહારના ભાગને પણ દેખે છે. (૪) અણુગાર વૃક્ષના અંદરના ભાગને પણ દેખતો નથી અને બહારના ભાગને પણ દેખતા નથી. : प्रभएवं किं मूलं पासइ? कंदं पास?3 REG! भावितामा અણુગાર વૃક્ષના મૂળને દેખે છે, કે કંદને દેખે છે? उत्तर-चउभंगो' I MIt Gत्त२ ३३ पूरित सा२ वि समवा. તે ચાર વિક નીચે પ્રમાણે છે-૧) કઇ ભાવિતાત્મા અણગાર વૃક્ષના મૂળને દેખે . (ર) કોઇ ભવિતાત્મા અણુગાર વૃક્ષના કદને દેખે છે, (૩) કોઇ ભાવિતાત્મા અણુગાર વક્ષના મૂળને પણ દેખે છે અને કંદને પણ દેખે છે, અને (૪) કોઈ ભાવિતાત્મા અણગારે વૃક્ષના મૂળને પણ દેખતું નથી અને કંદને પણ દેખ નથી. . प्रभ एवं किं मूलं पासइ, खंधं पासइ ?...3 मई-a! मावितात्मा २- भंगो T RY नाय भुमार विश्व ४ ४२१!-- भा॥२ क्षना भूजन से छथउन ६५ छ। . . . . . .
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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