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________________ • ?' प्रमेयंचन्द्रिका टीका. श. ३ उ. ४ सू. १ क्रियायावैचित्र्यज्ञान विशेष निरूपणम् ६०७ कश्विदुभयरूपेण, कश्चिनोभयरूपेण पश्यति । गौतमः पुनः पृच्छति - 'अणगा रेण भंते !" इत्यादि । हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भाविअप्पा' भावितात्मा 'रुक्खस्स' वृक्षस्य किम् ' अंतो' अन्तः मध्यवर्तिसारभागादि 'पासड ?' पश्यति ? 'वहिं' वहिः वहिर्वर्तित्वक पत्र शाखादि वा 'पासइ ?' पश्यति ? भगवानाह - ' चउभंगो' चतुर्भङ्गी वोध्या, अर्थात् पूर्वरीत्या कश्विदनगारो वृक्षस्यान्तः सारादिं पश्यति कश्चित् बहिर्वर्त्तित्वगादि पश्यति, कश्चित्तभयं पश्यति, कश्चिनोभयं पश्यति इतिरीत्या चतुर्भङ्गी विज्ञातव्या । पुनगतमः माह - ' एवं किं मूलं पासइ ? कंदं पासइ ?" एवम् उक्तरीत्या किम् मूलं पश्यति ! कन्दं पश्यति ? भावितात्मा अनगार इति प्रश्ने कृते सति - भगवानाह - 'चउ भंगो' चतुर्भही ज्ञातव्या, अर्थादुक्तरीत्या कश्चिन्मूलं, कश्चित्कन्दं, कश्चिदुभयं, रूप से ही देखता है, कोई उभयरूप से ही देखता है और कोई एक अनगार अनुभयरूप से ही देखता है। अब गौतमस्वामी प्रभुसे यह पूछते हैं किं 'अणगारेणं भंते! भावियप्पा' हे भदन्त ! जो भावितात्मा अनगार है वह 'रुक्खस्स किं अंतो पासह, वहिं पासह' वृक्षके अन्त को - मध्यवर्ती सारभागको देखता है या बाहिरी भाग रूप त्वक्कू-छाल, पत्र एवं शाखा आदि को देखता है. भगवान् गौतमके इस प्रश्नका उत्तर देते हुए उनसे कहने लगे कि - ' चउभंगो' इस प्रश्नका उत्तर पूर्वोक्त चतुभंगीके रूप में जानना चाहिये. अर्थात- पूर्वरीति के अनुसार कोई कोई भावितात्मा अनगार वृक्षके भीतरी भागरूप सारभाग को देखता है और भावनात्मा अनगार वृक्षके बाहिरी भागरूप छाल आदि को देखता है, तथा कोई भावितात्मा अनगार वृक्षके भीतरी भाग को દેવ અને યાનરૂપે દેખે છે, (૪) કાઇ દેવરૂપે પણ દેખતે નથી અને યાનરૂપે પણ દેખતા નથી. प्रश्न - ' अणगारेणं भंते । भवियप्पा डे महन्त ! आवित्मा अगुगार, रुक्खस्स किं अंतो पास, वहिं पासइ ? ) वृक्षनी अहरना ( मध्यवर्ती सारभागने ) भागने देणे छे, हे महारना लागइप छाल, पार्थ, शामा माहिने देणे छे ? उत्तर—' चउभंगो ' आ प्रभने उत्तर पूर्वोत अतुर्भगी३य ( यार वियो રૂપ ) સમજવે. તે ચાર વિકલ્પો નીચે પ્રમાણે છે—(૧) કોઇ ભાવિતામા અણુગાર વૃક્ષના અંદરના ભાગને દેખે છે, (ર) કૈાઇ ભાવિતાત્મા અણુગાર વૃક્ષના માહ્યરૂપ છાલ, પાન આદિને દેખે છે. (૩) કાઇ ભાવિતાત્મા અણુગાર વૃક્ષના અદના ભાગને પણ દેખે 4
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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