SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 768
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २९२ भगवती 'समणं भगवं, महावीर' श्रमणं भगवन्तं महावीरम् 'वंदर नमसई' कन्दते, नमस्पति- 'बंदिता, नमंसित्ता' वन्दिला, 'नमस्यित्वा एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेन 'वयासी' अवादीत्. 'कम्दाणं भंते "हे भगवन ! कस्मात् कारणात् खल्ल 'लवणसमुद्दे लवणसमुद्र। 'चाउद्दसमुष्टि-पुण्णमासिणी' चतुर्दशी-अष्टमीउदिष्ट-पूर्णिमासिषु चतुर्दशी-अष्टमी-अमावास्या-पूर्णिमा तियिषु 'अतिरेगे' तिथ्यन्तरापेक्षया अधिकाधिकम् फयं 'वढइ वा' बर्द्धते ? उपचीयते,? वा फर्य 'हायई वा' हीयते अपनीयते वा ? शाखकारः भगवदुत्तरं संगृप माह'जहा जीवाभिगमे इत्यादि । हे गौतम ! यथा जीवाभिगमे 'लवर्णसमुत्पत्तव्बया लवणसमुद्रवक्तव्यता प्रतिपादिता तया 'नेपन्ना' तथाऽत्रापि ज्ञातव्या, कियत्पथाद में 'समणं भगव महावीरं श्रमण भगवान महावीर को 'वंदई' उन्होंने गुणस्तुतिरूप वंदना की और उसके बाद उन्होंने उन्हें 'नमंसह! पंचांग नमनपूर्वक नमस्कार किया । 'बंदित्ता नमंसिना' चन्दना नमस्कार करके 'एवं घयासी' इस प्रकार से फिर उन्होंने पूछा-'कम्हाणं भंते !' हे भदन्त ! इस में क्या कारण है जो 'लवणसमुद्दे' लवण. समुद्र 'चाउसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु' चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या एवं पूर्णमासी इन तिथियों में 'अइरेगे' अन्य तिथीओं की अपेक्षा अधिकाधिक 'वड्ढह वा बढ़ता है.और 'हायहवा' घटतो है ? शास्त्रकार भगवान् ' के द्वारा दिए हुए उत्तर को संग्रहीत करके कहते है कि जहा जीवाभिगमे लवणसमुदंवत्तव्वया' जीवाभिगम नामक सूत्रं. में जैसी लवणसमुद्र के संबंध में कथन किया है उसी प्रकार का महावीर ते अभय मावान भावाने 'वंदाइ नमसह व नमार ३ छ. વૈદ એટલે ગુણસ્તુતિરૂપવંદણું અને નમસ્કાર એટલે પચાગ નમાવીને નમન કરવું તે वंदित्तानमंसित्तावा भारीन विनयपूर्व "एवं योसी' 20 प्रमाणे .युकहाणं भतेम- तथा रो मे मन 23 लवणसमुद्दे. समुद्र 'चाउद्दसमुद्दिट्ट पुण्णमासिणीसु' योदश, भ, अभास भने पूलभानी तिथि 'अइरेगा तिथिमा ४२ता अधि: अंभाभा. वड्ढावा द्धि, पामे छ मनायडवार भाट पाम छ ? वा तय मेछे १५३४ तिथियामा समाधारमोटीसती साट,या :छ.१. तापता महावीर प्रभु. ४३:छे जहा जीवाभिगमे लवणसमुहवत्तव्बयां नेयव्या' જીવાભિગમસૂત્રમાં લવણસમુદ્ર વર્ષ . મન થયું છે-તે સમસ્ત કથન અહીં પણ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy