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________________ ममेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.३ २.६ लवणसमुद्रीयजलोपचयापचयहेतुनिरूपणम् ५९१ समुद्रः चतुर्दशी-अष्टमी-उद्दिष्ट-पूर्णिमासिषु अतिरेक वर्द्धते वा १ हीयते वा यथा जीवाभिगमे लवणसमुद्रवक्तव्यता ज्ञातव्या, यावत्-लोकस्थितिः, लोकानुभावः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावत् विहरति ॥सू० ६॥ टीका-मण्डितपुत्रगमनानन्तरं भगवान् गौतमः मनोगतभावं पृच्छति-भंते!' इत्यादि । हे भगवन् ! इति शब्देन सम्वोध्य 'भगवं गोयमे भगवान गौतमः वंदना नमस्कार करके (एवं वयासी) फिर इस प्रकार पूछा (कम्हाण भंते ! लवणसमुद्रमें (चाउद्दसहमुद्दिद्वपुण्णमासिणोसु अइरेगे वनइ वा हायइ वा) हे भदन्त ! किस कारण से लवणसमुद्र चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या एवं पूणिमासी इन तिथियों में अधिक पढता है और किस कारण से अधिक घटता है ? (जहा जीवाभिगमे लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयव्वा जाव लोयट्टिई लोयाणुभावे) हे गौतम ! जीवाभिगममूत्र में लवणसमुद्र के संबंध में जैसा कथन किया गया वैसा ही कथन यावत् लोकस्थित और लोकानुभाव तक जानना चाहिये । (सेवं भंते ! सेव ! भंते ! ति जाव विहरइ) हे भदंत ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है-ऐसा ही है-इस प्रकार कहकर भगवान् गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये । टीकार्थ-मण्डितपुत्र के जाने के बाद भगवान् गौतमने प्रभु से अपने मनोगत भाव को पूछा-'भंते ति' इत्यादि-पूछने के पहिले हे भदन्त ! इस प्रकार से प्रभु को पहिले उन्होंने संबोधित किया । श, नमः॥२ ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ता) नभ२४।२ ४शन (एवं वयासी) मा प्रभारी ५ यु-(कम्हाणं भंते ! लवणसाद्दे चाउद्दसमुद्दिट्ट पुण्णमासिणीसु अइरेगं वडूढइ वा होयइ वा? 3 सह-त! पसभुगना रानी ચૌદશ, આઠમ, અમાવાસ્યા, અને પૂર્ણિમાના તિથિએ અધિક વૃદ્ધિ થાય છે? અને શા ४॥२'तभी मधि घटा थाय छ? (जहाजीवाभिगमे लवणसमुद्दवत्तव्यवा नयः न्वा जाव लोयहिई लोयाणुभावे) हे गीतम! वालिगभसूत्रमा समुद्र विष જે વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ વર્ણન અહીં ગ્રહણ કરવાનું છે: લેકસ્થિતિ અને सानुभाव पयत ते': एन ए ४२वु नये. (सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरई) महन्त ! आपनी पात तन सत्य मापे २ ४धु a यथाय છે. એમ કહીને વંદણુ નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા. - ટીકાથ-મંડિતપુત્ર મહાવીર પ્રભુ પાસેથી વિદાય થયા પછી, ગૌતમ સ્વામી __ भी अभुने 'मंते तिमहत! साधन ४२ छे. त्या२ मा 'समणं भगवं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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