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________________ मतेना पति पतते ममाए ५६४ . . . . . . भगवतीसरे यावग खलु स जीवः 'सया समियं सदा समितम् 'णो एयर' नो एजते, 'जाव-नो परिणमई' यावत् नो परिणमति, यावरकरणात् 'नो व्येजते' इत्यादि संग्राहाम्, 'तायं च णं से जीवे' तापच खलु स जीवः 'नो आरंभई' नौ आर. मते, नो सारंमई' नो संरगते 'नो समारंभई' नो समारमते. 'नो आरंभे वाई' नो आरम्भे पर्वते 'नो सारंमे यट्टर' नो संरम्भे धर्तते 'नो समारंभे वहई' नो समारम्भे वर्तते प्रवर्तते, 'अणारंममाणे' अनारममाणः 'असारममाणे' असंरगमाणः 'असमारंभमाणे' असमारममाणः, , अय द्वितीयवाक्यमनुयदति-'आरमे अट्टमाणे' आरम्भे अवर्तमानः जपतक यह जीव 'सया समियं गो एयई' रागादिक भाव से रहित हो जाता है कभी भी किसी अवस्था में वह रागद्वेष आदि भावों को नहीं करता है यावत् वह उन२ भावरूप परिणमित नहीं होता है, अर्थात् एजनादि क्रिया से रहित होजाता है। यहां यावत् पद से 'न व्येजते' आदि पूर्वोक पाठ ग्रहण किया गया है। तय उसमें ऐसी शक्ति आजाती है कि वह जीव 'नो आरंभई' आरंभ नहीं फरता हैं, 'नो सारंभइ' संरंभ नहीं करता हैं, 'नो समारंभई' समारंभ नहीं करता है। 'नो आरंभे चट्टई' आरंभ में नहीं वर्तता है, 'नो सार मे वई' संरंभ में नहीं वर्तता है 'नो समारंभे वहद' समारंभ में नहीं वर्तता हैं। इस 'अनारंभमाणे' अनारंभ करता हुआ, 'असारंभमाणे' असंरंभ करता हुआ, 'असमारंभमाणे' असमारभ 'सया समियं णो एयइ' us मावायी २डित य नय छ- ५ सया. शामा ते रागद्वेष ४२तो नथा, (यावत्) भने नयां सुधी ७ ते नाव३५ परिणभती नथा. त्या सुधी 'नो आरंभइ, नो सारंभइ, नो समारंभई' ते मान કરતો નથી સંરંભ કરતો નથી અને સમારંભ પણ કરતો નથી. અહીં “યાવત્ ' પદથી नो व्येजते' मा पूर्वात 48 ] ४सय छ, मा शत नो आरंभे वड, नो सारंभे वइ, नो समारंभे वह मान, सरल मने सभासमा ७५ प्रवृत्त थत नथी. मा शत 'आनारंभमाणे' अनारसमा प्रवृत्त भेटले मारसभा मप्रवृत्त, 'असारंभमाणे' मस२ ४२ते. 'असमारंभमाणे समान श्ता तथा मीन भडावाय अनुसार 'आरंभे अवमाणे मार मां अपत भान मासे अपमाणे, संभा प्रवृत्त “समारंमे अवमाणे' मन
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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