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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.२ सू.१३ अनुरकुमारऊर्ध्वगमनस्वरूपनिरूपणम् ५१५ टीका-पूर्वम् असुरकुमारदेवानां पूर्वभवमत्ययिकवैरानुबन्धस्य सोधर्मकल्पपर्यन्तगमनहेतुत्वं प्रतिपादितम् अधुना तत्रैव हेत्वन्तरमभिधातुं मस्तौति'किं पत्तियं णं भंते!' इत्यादि । हे भगवन् ! किं प्रत्ययं खलु कः प्रत्ययः कारणं यत्र तत् किं प्रत्ययमित्यर्थः हे भदन्त ! किंकारणम् अनुरकुमारा देवाः 'उड़ उप्पयंति' उर्ध्वम् उत्पतन्ति ? गच्छन्ति 'जाब - सोहम्मो कप्पो' यावत् सौधर्मः कल्पः ? असुरकुमाराणां सौधर्मकल्पपर्यन्तगमने को हेतुः ? यावत्पदेन वानव्यन्तरज्योतिपिकादिसंग्राद्यम् | भगवानाह - ' गोयमा । तेसिणं इत्यादि । हे गौतम! तेपां खलु असुरकुमाराणाम् ' देवाणं' देवानाम् ' अहुणोत्रवनगाणं वा' अधुनोत्पन्नानां वा तत्कालोत्पन्नानाम् 'चरमभवत्थाणं वा चरम टीकार्थ - यह बात पहिले प्रकट की जा चुकी है कि असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक जो जाते हैं उस जाने में कारण पूर्वभव प्रत्ययिक वैरानुबंध है । अब वहां तक उनके जाने में दूसरा भी कारणे प्रकट किया जाता है - इसी द्वितीय कारण को जानने के लिये गौतम स्वामी महावीर प्रभु से प्रश्न करते हैं कि- 'असुरकुमारा देवा उद् उप्पयंति' असुरकुमार देव ऊँचे जाते हैं- और 'जाव सोहम्मो कप्पो' यावत् वहांतक जाते हैं कि जहां जक सौधर्मदेवलोक है ऐसा आप कहते हैं तो इस पर म 'भंते' हे भदन्त ! आपसे यह जानना चाहता हूं कि 'किं पत्तियं णं' उस में कारण क्या है ? यहां यावत् पदसे वानव्यन्तर ज्योतिष्क आदिकोंका ग्रहण हुआ है । इस प्रश्नका समाधान करते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'अहुणोववनगाणं तेसिं चरिमभवत्थाणं वा तेसिं' तत्काल उत्पन्न हुए આ ટીકા—અસુરકુમાર દેવો સૌધ કપ પર્યંન્ત ઊંચે જાય છે. ત્યાં તેમના ગમનનું એક કારણ પૂર્વભવના વૈરાનુખધ છે, એ વાત પહેલાં આવી ગઇ છે. સૂત્રમાં ત્યાં તેમના ગમનનું બીજું પણ એક કારણ બતાવવામાં આવે છે. ગૌતમ સ્વામી महावीर अलुने पूछे छे 'असुरकुमारा देवा उडूढं उप्पयंति जात्र सोहम्मो कप्पो' डे महन्त ! अभुरभार देवो अथे सौधर्भ हेवसेोऽ सुधी लय छे, भेधुं आप ४हे। छो, तो डे लद्दन्त ! 'किं पत्तियं णं' तेा त्यां था अरबो लय छे? सड 'जान' (यावत् ) पथी वानव्यन्तर भने ज्योतिष्ठ माहि देवो ग्रहषु हराया छे. भडावीर प्रभु गौतम स्वाभीने या प्रमाणे वाण आये है 'गोयमा ! हे गौतम ! 'अहुणोवनगाणं तेसिं चरिमभवत्थाणं वा तेसि' तत्क्षण उत्पन्न थयेसां ( नवा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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