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________________ - ५१२ भगवतीने देवराया दिवं देवढेि जाव-अभिसमन्नागयं, तं जाणामो ताव सकस्स देविंदस्त, देवरण्णो दिवं देविढेि जाव-अभिसमन्नागये, जाणउताव अम्हे वि सके देविंदे देवराया दिवं देविड्ढेि जार--अभिसमन्नागयं, एवं खल गोयमा ! असुरकुमारा देवा उडु उप्पयंति; जाव-सोहम्मो कप्पो, सेवं भंते ! सेवं भंते ति ॥ सू० १३ ॥ चमरो सम्मत्तो ॥ छाया-कि प्रत्ययं खल भदन्त ! अमुरफुमाराः देवाः ऊर्चम् उत्पतन्ति, यावत्-सौधर्मः कल्पः? गौतम ! तेषां देवानाम् अधुनोत्पन्नानां वा चरमभवस्थानां वा अयमेतद्रूपः आध्यात्मिका, यावत् समुत्पद्यते-अहो । अस्माभिः-दिव्या देवर्द्धि यावत्-लब्धा, प्राप्ता, अभिसमन्वागता, यादृशिका अस्माभिः-दिव्या 'किं पत्तियं णं भंते' इत्यादि ।। सूत्राध-(किं पत्तिय णं भंते ! असुरकुमारा देवा उडू उप्पयंतिजाच सोहम्मो कप्पो) हे भदंत ! असुरकुमारदेव ऊंचे यावत्सौधर्मकल्प तक किस कारण से जाते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तेसि णं देवाणं अहुणोचवनगाणं वा चरिमभवत्थाणं घा इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजइ) जो देव वहां नवीन उत्पन्न होते हैं, अथवा जो मृत्यु के सन्मुख आजाते हैं, उन देवों के ऐसा वह आध्यात्मिक यावत् संकल्प उत्पन्न होता है कि (अहो णं अम्हें हिं देवा देवी जाव लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया) अहो ! हमने दिव्य देवद्धि यावत् लब्ध की है एवं अभिसमन्वागत की है-उस पर हमने अपना 'कि पत्तियं णं भंते त्याle सूत्रार्थ-(किं पत्तियं णं भंते ! असुरकुमारादेवा उइद उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?) 3 महन्त ! मसुमार वो शामणे ये सीपमats पर्य- 4 छ ? (गोयमा ) गौतम ! (तेसिणं देवाणं अहणीवनगाणं का चरिमभवत्थाणं वा इमेयारूवे अज्झथिए जात्र समुष्पज्जइ) त्यांना દેવો ઉત્પન્ન થાય છે, અથવા જે દેવોનું મૃત્યુ નજીક આવી પહોંચે છે, એવા દેવાને सारी माध्याभि: स ३६५ अत्पन्न याय छे (अहो णं अम्हें हि देवा देविड़ी जाव लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया) भाडे! ! अमेय व मजा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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