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________________ ममेयचन्द्रिकाटीका श. ३. उ. २ सू० १३ असुरकुमारऊर्ध्वगमनस्वरूपनिरूपणम् ५१३ देवविः यावत् - अभिसमन्वागता, तादृशिका शक्रेग देवेन्द्रेण, देवराजेन दिव्या देवर्द्धिः यावत् अभिसमन्त्रागता यादृशिका शक्रेण देवेन्द्रेण देवराजेन यावत्अभिसमन्वागता, तादृशिका अस्माभिरपि यावत् अभिसमन्वागता, तद्गच्छामः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवामः पश्यामस्तावत् शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य दिव्यां देवद्धिं यावत्-अभिसमन्वागताम् पश्यतु तावत् अस्मा पूर्ण प्रभुत्व स्थापित किया है (जारिसियाणं अम्हेहिं दिव्वा देविड़ी लद्वा, पत्ता, जाव अभिसमण्णागया) तो जैसी हमने दिव्य देवदि लब्ध की है, प्राप्तकी है यावत् अभिसमन्वागतकी है (तरि सियाणं सक्के णं देविंदेणं देवरण्णा दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया) वैसी ही दिव्य देव देवेन्द्र देवराज शक्रने भी लब्ध की है, की है- अभिमन्वागत की है तथा (जारिसियाणं सक्केणं देविदेणं देवरणा जाव अभिसमण्णागया, तारिसियाणं अम्हेहि वि जाव अभिसमन्नागया) जैसी देवेन्द्र देवराज शक्रने दिव्य देवद्धि यावत अभि समन्वागत की है वैसी ही वह दिव्य देवर्द्धि हमने भी यावत् अभिसमन्वागत की है । (तं गच्छामो णं सक्करस देविंदस्स देवरणो अंतियं पाउन्भवामो) तो चलें उस देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रगट होवें और (पासामो ताव सकस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविडूिढं जाव अभिसमण्णागयं) उस देवेन्द्र देवराजकी यावत अभिसमन्वागत दिव्य देवद्धि को देखे । ( पास ताव अम्हे वि तक्के છે, પ્રાપ્ત કરી છે અને અભિસમન્વાગત કરી છે. એટલે કે સારી રીતે પ્રાપ્ત થળેલ તેના પર પૂર્ણ પ્રભુત્વ પ્રાપ્ત કર્યું" છે. प्राप्त (जारिसियाणं अम्हेहिं दिव्वा देविडढी लद्धा, पत्ता, जात्र अभिसमण्णागया) જેવી દિવ્ય દેવદ્ધિ અમે મેળવી છે, પ્રાપ્ત કરી છે, અભિસમાન્વાગત કરી છે, (तारिसियाणं सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया) એવી જ દિબ્ય દેવગ્નિદેવેન્દ્ર દેવરાજ શકે પણ મેળવી છે,પ્રાપ્ત કરી છે અને અભિ સમન્વાગત श्री छे स्वाधीन श्री छे तथा (जारिसियाणं सक्केणं देविदेणं देवरण्णां जाव अभिसमण्णा गया, तारिसियाणं अम्हे हि वि जाव अभिसमण्णागया) नेवी हिग्य દેવહૈ દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકે પ્રાપ્ત કરી છે અને અભિસમન્વાગત આધિત કરી છે એવી જ हिव्य हेवद्धि अभे ययु प्राप्त छे भने अभिसमन्वागत उरी छे ( तं गच्छामो णं सकस देविंदस्स देवरणो अंतियं पाउन्भवामो ) तो थाली, ते देवेन्द्र हेवन शउनी पासे अउट थटमे, भने (पासामt are सकस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविड्ढीं जाव अभिसमण्णागयं ) हेवेन्द्र हेवराज शडे ने हिव्य हेवद्धि भेजनी है, आप्त ऐरी छे भने उपलोज्य उरी ते हिव्य हेवद्धिने लेई (पासउ तात्र अम्हे
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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