SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 634
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९२ credia शक्रस्य तथैव शातव्यम् 'नगर' नरम् विशेषस्तु मरस्य 'स्वे' सर्व dr 'and' पतनानः उपयणका उत्पतनकारस्तु 'संखेउजगुणे' संख्येयगुणः, गौतम स्वच्छ-'बज्जा पृच्छा' वस् अस्ति, अर्थात् दे भगवन् वः उत्पातकालयमध्ये कः कालः अल्प या कावा, विशेषाधिक वा वर्तते ? भगवानाह गोयमा!' दे गौतम । यत् स्तोकः सर्वतो न्यूनः 'उप्पयणकाले' उत्पतन, 'name' raपतनकालस्तु 'विसेसाहिए' विशेषः । गौतमः पृच्छति- 'एयस्स णं मंते ! हे भगवन् एतस्य खलु 'जम्स' वजस्य तथा 'नासा' चाधिपतेः शक्रस्य च पुनः 'चमरस्स 'चरस्य च 'अस्मि' असुरेन्द्रस्य 'अनुररणो' अनुतराजस्य 'ओत्रयणmrata a aayaanलस्य च 'उपयणकाल ' उत्पतनकस्य च मध्ये णकाले संखेज्जगुणे' चमरमा अधोगमनकाल सबसे अच्प होता है। तथा उर्ध्वगमनकाल उसकी अपेक्षा संख्यात गुणा अधिक होता है अब गौतम वज्र के far as से पूछते हैं-वजस्म पुच्छा' है भदन्त ! वज्र के उर्ध्व में उत्पतनका और नीचे में अवपतनका जो काल है उनके बीच में कौन का है कौन काल अधिक है कोन काल तुल्य है और कौन का विशेषाधिक है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम । सव्वत्थोवे उप्पयणकाले' सबसे कम उत्पतन काल है और 'ओवयणकाले' अवपतन काल विशेपाधिक है । गौतम पूछते हैं-'एयस्स णं भंते !' हे भदन्त इस 'वज्जस्स' ar के तथा 'चला हवइम्स' वज्राधिपति शक्र के एवं 'चमरस्स य चमर के जो कि 'असुरिंदरस असुररण्णो' असुरोका इन्द्र और असुरराज है इन तीनों के 'ओवयणकालस्स' अवपतनकाल और ચમરને અાગમન કાળ સૌથી એ હાય છે અને ઉ་ગમન કાળ તેના કરર્તા સખ્યાત ગણા હોય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી વજ્રના વિષયમાં એવેજ પ્રશ્ન પૂછે છે 'चज्जस्स पुच्छा' है महन्त ! वना उर्ध्वगमन प्राण भने अधोभन अणभांथी કયા કાળ કયા કાળથી ન્યૂન છે, કયા કાનાથી અધિક છે, કચે। કાની ખરાબર છે, અને કયે કાળ કાના કરતાં વિશેષાધિક છે ? वाण - 'गोयमा!' हे गौतम ! 'सव्वत्थोवे उप्पयणकाले' उत्पतनअण (Ga शभनाण) सौथी न्यून छे, भने 'ओवयणकाले' अधोगमनक्षण नीचे ज्वानो समय તેના કરતાં વિશેષાધિક છે. प्रश्न- 'एयस्स णं भंते, डे महन्त 1 'वज्जस्स वज्जाविइस्स चमरस्स च असुरिंदरस असुररण्णोथ, अधिपति रामने असुरेन्द्र भरना 'ओवयण '
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy