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________________ , 7 म. टी. श. ३उ. २ मृ. १० देवानां पुद्गलमक्षेपमतिसंहरणादिशक्तिस्वरूपनिरूपणम् ४७३ ऊर्ध्वम् उत्पतति 'तं वज्जे दोहिं' तत् क्षेत्रं वत्र द्वाभ्याम्, ततो द्वाभ्यां समयाभ्यां वज्रम् ऊर्ध्वमुत्पतति, 'जं वज्जेदोरिं' यत् क्षेत्रं वज्रं द्वाभ्यां समयाभ्याम् उत्पतति ऊर्ध्वं गच्छति 'तं चमरे वीर्हि' तत् क्षेत्रं धमरः त्रिभिः वत् त्रिगुणसमयैः ऊर्ध्वमुत्पतति शक्रस्य उपर्युक्तोर्ध्वाधः क्षेत्रगमनविपये कालभेदानुपसंहरति- सन्वत्थोवे' इत्यादि । सर्वस्तोकम् सर्वापेक्षया न्यूनं स्वल्पम् 'सक्क्स्स देविंदस्स देवरपणे' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'उड्डलोअकंडए ऊर्ध्वलोककण्डकम्, ऊर्ध्वलोकगमने कण्डकं कालखण्डमूर्ध्वगमनेऽति शीघ्रत्वाद किन्तु 'अहो लोअकंडए' अधोलोककण्डकम् शक्रस्याधोलोकगमन कालखण्डम् 'संखेज्जगुणे' संख्येय गुणम्' ततो द्विगुणितम् अर्थात् शक्रस्य ऊर्ध्वगमनकालाजाता है 'एक्केणं समएणं' एक समय में अर्थात् एक समय में शक्र ऊपर की ओर जितने क्षेत्र तक जाता है 'तं वज्जे दोहि' उतने ही क्षेत्र में वज्र दो समय में और 'चमरे' चमर उतने ही क्षेत्र में 'तीहि ' तीन समय में जाता है । इस तरह ' देविंदस्स देवरण्णो मम्स देवेन्द्र देवराज शक्रका 'उलीयकंडए ' उर्ध्वलोक कण्डक - उर्ध्वलोक गमनमें कण्डक - कालखण्ड 'सव्वत्थोवे' सर्वकी अपेक्षा से न्यून हैअत्यल्प हैं क्यों कि उर्ध्वलोक में जाने में शक्रको अतिशीघ्रता कही गई है । परन्तु 'अहोलोयकंडए' शक्रका जो अधोलोक गमन कण्ड़क है - कालकण्ड है वह 'संख्खेज्जगुणे' संख्यातगुणा है अर्थात् उर्ध्वलोकगमन कण्डक से दुगुना है । शक्रको उर्ध्वलोक में गमन करनेमें जितना समय लगता है उससे द्विगुणित समय उसे अधोलोक में गमन करने नेटसे अये ४ शडे छे. ' तं वज्जे दोहिं ' भेटले आये भवाने भाटेने मे समय लागे छे. ' चमरे तीहिं' अने भरने त्रयु समय लागे छे. ' देविंदस्स देवरणो सकस्स' देवेन्द्र हेवरा राईनो या रीते 'उड्डलोयकंडए ' साठ गमनना 83 (अजमान) 'सव्वत्थोवे' मेघां उरतो न्यून छे. उडेवाना भावार्थ એ છે કે ઉર્ધ્વ લેાક ગમનમાં જેટલું અંતર કાપવાને શક્રને જેટલે સમય લાગે છે, તેટલુ અંતર કાપવાને વાને શઘ્ર કરતાં બમણું અને ચમરને ત્રણ ગણુા સમય લાગે છે આમ મનવાનું કારણ એ છે કે ઉર્ધ્વલાક ગમનમાં શકની ગતિ અતિશય શીઘ્ર હાય છે,અને ચમરની गति अतिशय भौंह होय छे. पशु' अहोलोयकंडए ' शहेन्द्रना मद्योगभननुं अजभान 'संखेज्जगुणे' उर्ध्वगमनना अणमान ४२तां संध्यात गर्छु हे—भेटले उर्ध्वगभन ના કાળમાન કરતાં અધેગમનનું કાળમાન ખમણુ છે. એટલે કે ઊંચે જેટલે અ ંતરે જવાને માટે શકને એક સમય લાગે છે, એટલે જ અંતરે નીચે જવા માટે તેને એ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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