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________________ ४७२ ( , भगवतीसूत्रे वर्तते किन्तु विराए' ऊर्ध्वं गतिविषयः ऊर्ध्वगमनसामर्थ्यम् 'अप्पे red चैत्र' अल्पपचैव अतिशयेनाल्पः अत्यल्पः 'मंदे मंदे चेच' मन्दः मन्दव अतिमन्दः ' वैमाणिभ्राणं ' 'वैमानिकानां देवानान्तु 'ॐ' ग' क गतिविषयः ऊर्ध्वगतिस्वरूपम् उर्ध्वगमनशक्तिः 'सीधे सीधे 'चैत्र' शीघ्रः शीघ्रचैव अतिशीघ्रः तथा 'तुरिए तुरिए चैत्र' त्वरितः, त्वरितश्चैवास्ति अतिशयत्वरायुक्तः किन्तु 'अहे गइसिए' अधोगति विषय:- अधोगतिस्वरूपम् 'अप्पे अप्पे चैत्र' अल्पः अल्पयेत्र अत्युचः तथा 'मंदे मंदेचेय' मन्दः मन्दचैवअतिमन्दो वर्तते, एतावता उपर्युकरीत्या देवानां गतिस्वरूपे प्रतिपादिते सति शक्र - वञ्चचमराणाम् तुल्यमाने ऊर्धक्षेत्रादौ गन्तव्ये कालभेदं दर्शयति'जाव' इत्यादि । यावत्कं यत्परिमाणम् 'खेत्तं ' क्षेत्रम् प्रदेशम् ' सक्के देविंदे' शक्रो देवेन्द्रः, 'देवराया देवराजः 'उड्ड उप्पय ' ऊर्ध्वम् उत्पतति गच्छति 'एक्केणं समयेणं' एकेन समयेन, अर्थात् यावता कालेन शक्रः गईचेव' वेगवान होता है और शीघ्रगतिवाला होता है तथा 'तुरिए तुरिय गईनेव' त्वरायुक्त और त्वरावाली गतिवाला होता है परन्तु 'गविसए' ऊपर जाने का उनका स्वभाव - ऊपर जानेकी शक्ति- "अप्पे अप्पेचेव' अल्प अल्प है- अत्यन्तकम है 'मंदे मंदेचेच' मन्दमन्द हे अतिमन्द है तथा 'वैमाणियाणं वैमानिक देवोंका 'उड़ढं गइविसए' ऊपर जाने का जो स्वभाव है- ऊपरजाने की जो उनकी शक्ति है 'सीधे सीधे 'देव' वह तो अति शीघ्रता वाला होता है ' तुरिए तुरिए चेव' और अत्यन्त स्वरासे युक्त होता है, तथा ' अहेगइविसए' नीचे जाने का स्वभाव 'अप्पे अप्पे चेच, मंदे मंदे चेव' उनका अत्यल्प होता है और अति मन्द होता है इस कारण 'जावइयं खेत्त सक्के देविंदे देवराया उढ उपयह' देवेन्द्र देवराज शक्र ऊंचे जितनी दूर तक डाय छे, 'तुरिए तुरियगईचेव' नाथे गमन ४२वामां तेथे त्वरिताने त्वरित गतिवाजा होय छे, परंतु 'उड गई विसए' उगमन ४२वानी तेभनी शक्ति 'अप्पे अप्पे चेव' . - • दे मंदे चेव ' अत्यंत मह होय छे, 'मणियाणं उड गई विसए' वैमानि देवोनी जथे गमन हरवानी गति 'सीग्वे सीग्वेचेव' अतिशय शीघ्र भने 'तुरिए तुरिए चेव' अतिशय त्वरित होय छे, तथा 'अहे गइ चिसए' तेभनी नीचे जमन रवानी गति 'अप्पे अप्पे चेव, मंदे मंदे चैत्र' अत्य ंत अध्य् अने अत्यंत भ' होय . ते अ, 'जावइयं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया उड्ढ उपयइ एक्केणं समएणं' थे! समयमा इवेन्द्र देवरान श
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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