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________________ भगवतीय स्वरायुक्तः स च गतेरन्पप्राऽपि गवेदतार-तरिमगईचेव' स्वरितगतिशेव पेगशालिगतिमांश भवति मानसीमुक्यमवर्तितवेगशालिगतिरित्यर्थः । 'से तेण?ण' तत्तेनार्थेन तेन हेतुना नाव-पभू गेण्डिगप' यावत्-प्रमुः ग्रहीतुम् यावत्पदेन 'पुवामेव पोग्गलं खिवित्ता 'ति' पूर्वमेव पुद्गलं सिप्त्वा इति संग्रामम्, पक्षिप्तमेव पुद्गलमनुयत्य प्रतिसंहढे समर्थः इति भावः। गौतमः पुनः प्रच्छति 'जइणं भंते । इत्यादि । हे भगवन् ! यदि खलु 'देवे मट्टिीए' देवो महर्दिकः शीघगतिथ 'नाव-अणुपरियटित्ताणं' यायत् अनु. पर्यटय खलु 'गेण्डित्तए' ग्रहीतुम् ममर्थः, यावत्करणाव 'पूर्वमेव पुद्गळं हैं। इससे यह प्रकट किया गया है कि महर्दिक आदि विशेषणों चाला देव स्वयं वेगवान होता है और शीघ्रगतिवाला ही होता है, अशीघ्रगतिवाला नहीं होता। इसी तरह यह 'तुरिए तुरियगईचेच' त्वरावाला और त्वरावाली गतिवाला होता है। 'स्वरावाली गतिवाला ऐसा जो कहा है सो त्वरायुक्तता गति के सिवाय दूसरी जगह भी तो होती है अतःजय वह स्वयं त्वरावाला होता है तो उसकी गति भी त्वरावाली होती है अर्थात् वह वेगवाली गतिवाला होता है मानसिक उत्सुकता से प्रवर्तित वेगवाली गतिवाला होता है। 'से तेणोणं' इस कारण वह 'जाव' यावत् 'गेण्हित्तए' ग्रहण करने के लिये 'पभू' समर्थ होते हैं 'यहां यावत् पदसे 'पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता' पूर्व में फेके गये पुद्गलको उसने पीछे जाकर ग्रहण करने के लिये समर्थ होता है ऐसा अर्थ हो जाता है | अब गौतमम्वामी पुनः प्रभु से पूछते है कि 'जइणं भंते देवे महिड्डीए' हे भदन्त ! यदि महधिक देव 'जाव' यावत् 'अणुपरियट्टित्ताणं' पीछेसे जाकर 'गेण्हित्तए' ग्रहण डाय छ. अशी गति डता नथी. 'तुरिए तुरियगई चेवर तसा सरावाणा ડાય છે અને ત્વરિત ગતિવાળા હોય છે. “વરાવાળા અને ત્વરિત ગતિવાળા' પદને પ્રોગ થવાનું કારણ નીચે પ્રમાણે છે–ત્વરાયુકતતા ગતિ સિવાય બીજી બાબતમાં પણ વધી શકે છે. તેઓ પોતે જ ત્વરાવાળા હોવાથી તેમની ગતિ પણ વરાયુકત હોય समरसता भानसि Brसुतायी। वाणी तिव. डाय छे. 'से तेण- . रोण्डित्तए' ते २ तसा पूर्व प्रक्षित मसानी छ भने भने ફરીથી પકડી શકવાને સમર્થ હોય છે. प्रश्न-जाणं भंते देवे महिवाए' 3 महन्त 1 महद्धि जान अणुपरियहिताणं गेण्हित्तए पूर्ण प्रक्षित हासन पाछी ५ तनशथी
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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