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________________ म.टीका श.३ उ.२ सू. १० देवानां पुद्गलमक्षेपप्रतिसंहरणादि निरूपणम् ४७१ क्षिप्त्वा प्रभुस्तमेव ' इति संग्राह्यम्, तर्हि 'कम्हाणं भंते !' हे भगवन् ! कस्मात्खलु कारणात् 'सबकेणं देविदेणं देवरण्णा' शक्रेण देवेन्द्रेण देवराजेन 'चमरे असुरिंदे असुरराया' चमरः अनुरेन्द्रः अमुरराजः 'नो संचाइए' नो शक्तः 'साहत्यि' स्वहस्तेन 'गेण्हित्तए' ग्रहीतुम् ? अर्थात् यदि देवानां शीघ्रगतितया प्रक्षिप्तपुद्गलग्रहणसामर्थ्य वर्तते तर्हि शकः स्वस्थानात् अधः पलायितं चमरं कथं न गृहीतवान् ? इति प्रश्नाशयः । ___ भगवानाह 'गोयमा !' हे गौतम ! 'अमुरकुमाराणं देवाणं' असुरकुमाराणाम् देवानाम् 'अहे गविसए अधोगतिविषयः-अधोगमनस्वरूपम् 'सीग्धे सीग्ध गई चेव' शीघ्रः शीघ्रगतिश्चैव, वर्तते तथा ' तुरिए तुरिअगईचेत्र करनेके लिये शक्य होता है, अर्थात् पूर्व प्रक्षिप्त पुद्गलको उसके पीछे जाकर वह महर्दिक देव ग्रहण करने में पकड़ने में समर्थ होता है ऐसा जो आप कहते हैं सो इस पर मेरा आप से यह पूछना है कि 'कम्हाणं भंते' हे भदन्त ! फिर क्या कारण है जो 'देविदेणं देवरण्णा' देवेन्द्र देवराज 'सक्केणं' शक 'असुरिंदे असुरराया' असुरेन्द्र असुरराज 'चमरे' उस चमरको 'साहत्यि' अपने हाथसे 'गेण्डि ए' पकडने के लिये 'नो संचाइए' समर्थ नहीं हो सका? अर्थात् यदि देव शीघ्र गतिवाले होते है कारण प्रक्षिप्त पुद्गलोंको ग्रहण करनेमें शक्तिशाली है तो शकने फिर अपने स्थान से नीचे भगे हुए चमर को क्यों नहीं पकड़ा? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमस्वामी से कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'असुरकुमारा णं देवाणं' असुरकुमार जाति के देवों का अहे गइविसए' नीचे जानेका स्वरूप-स्वभाव तो 'सीग्घे सीग्घपावाने समर्थ य तो 'कम्हाणं भंते! देविदेणं देवरणा सक्केण ' के महन्त ! हेवेन्द्र १२४ २४, या २४ो 'अमरिंदे असुरराया चमरे 'मसुरेन्द्र असु२२६८ यमरने साहत्यि' पाताना डायथा 'गेण्हित्तए. ५४ पावाने 'नो संचाइए' समर्थ न थये। ? ४डला- तात्पर्य छ । शाध गतिमा लय छे. તે શકેન્દ્ર પણ શીધ્ર ગતિવાળે હશે. છતાં તેણે પિતે જ પીછે પકડીને ચમરેન્દ્રને કેમ ન પકડી પાડયે ? તેને સજા કરવાને માટે જ શા માટે છેડયું ? પોતે જ કેમ તેને ન પકડ? હવે મહાવીર પ્રભુ તેનું કારણ સમજાવે છે– 'गोयमा ! 13 गौतम ! 'अमरकुमाराणं देवाणं अहे गई विसए सीग्वे सीग्यगई चेव' मसुरभार वा नाय गमन ४२पामा शवान ने शातिवाणा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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