SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - प्र.टीका श.३ उ.२ सू.८ शक्रस्य वज्रमोक्षण भगवच्छरणागमन निरूपणम् ४३७ भयानकम् 'वज्ज वजम् 'चमरस्स अमरिंदस्स असुररणो' चमरस्य अनुरेन्द्रस्य अमुरराजस्य 'वहाए' वधाय हन्तुम् 'निसिरइ' निःसृजति मक्षिपति मुश्चतीत्यर्थः 'तएणं से' ततो वज्रमक्षेपानन्तरं खलु स चमरः 'अमरिंदे अनुरराया' असु. रेन्द्रः असुरराजः 'तं जलंत' तम् उपर्युक्तम् ज्वलन्तं जाज्वल्यमानं 'जाव भयंकरं यावत्-भयंकरम्, यावत्करणात् उपर्युक्तविशेषणविशिष्टम् 'स्फुटन्तम् तडवडन्तम्, उल्कासहस्राणि विनिर्मुश्चन्तम्, ज्वालासहस्राणि प्रमुञ्चन्तम्, अङ्गार सहस्राणि मविक्षरन्तम्, स्फुलिङ्गज्वालामालासहस्रः चक्षुर्विक्षेपदृष्टिमविघातं प्रकुर्वन्तम् हुतवहातिरेकतेजोदीप्यमानम्, जयिवेगम्, फुलकिशुकसमानम्, महाभयम्, इति संग्राह्यम्, 'वज्जमभिमुह' वज्रम् अभिमुखम् स्वाभिमुखम् 'आवयमाणं' आपतन्तम् आगच्छन्तम् 'पासइ' पश्यति 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'झियाइ' ध्यायति-किमेतत् ? इति विचिन्तयति 'पिहाइ' स्पृश्यति-स्वस्थानं गन्तुं वांछति अथवा 'पिटाई' इत्यस्य पिधत्ते इतिच्छायापक्षे पिधत्ते तं वज्रं दृष्ट्वा अक्षिणी निमीलयति 'झियायित्ता पिहाईत्ता' ध्यात्वा स्पृहयित्वा तहेव' तथैत्र वर्णसे युक्त 'महन्भय' भयानक, ऐसे 'वज वज्रको 'चमरस्स असु. रिंदस्स असुररण्णो वहाए निसिरई' असुरेन्द्र असुरराज उस चमरको मारनेके लिये छोड़ दिया 'तए णं से असुरिंदे असुरराया' इस के बाद उस अमरेन्द्र असुरराज चमरने 'जलतं जाव भयंकर तं वजे अभिमुहं आवयमाणं पासई' जाज्वल्पमान यावत् भयंकर उस वज्र को अपने समक्ष आता हुआ जय देखा' पासित्ता' तो देखकरके 'झियाई' यह क्या है इस तरह से उसने विचार किया 'पिहाई' और . अपने स्थान पर चले जाने का विचार किया, अथवा 'पिहाइ' उस वज्र को देखकर उसने अपनी दोनों आंखों को बंद कर लिया 'झयायित्ता, पिहोइत्ता' ध्यान करके और आंखों को बंद करके 'तहेव' GG fi, 'महामायं मयान, मेj M 3, हेवेन्द्र वरा यमरने का भाट छायु 'तएणं ते असरिदे त्या ताप्यभान मा विशेषगायो युक्त पाने पाताना त२५ मातुं न न देवेन्द्र १२८ यभरे 'झियाइ पिहाई बलात थधन त्यांची पाताने स्थानमा पानी पिया ध्यो. 'पिहाई' भय पाने नधन त तनी मांजो शीधी. सावा अर्थ ५५ ४२N Ax4. 'झियायित्ता पिहाईत्ता'को तेथे मांगो मध शने त्यांची नाभी पानी पिया ध्यो,
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy