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________________ ४३६ भगवतीस वज्रमित्यग्रेणान्वयः स च निःसृजति इत्यस्य कर्म योध्यः, पुनः बज्रविशेषणान्याह- 'फुडतं' स्फुटन्नम् शब्दायमानं 'तडनरंतं ' नदतदन्तम् 'तडतड' इति शब्दं कुर्वन्तम् ' उपासदस्सा उल्कासहस्राणि सहस्रीकानि 'त्रिणिमुयमाणं ' विनिर्मुञ्चन्तम्, निस्सारयन्तं कुर्वन्तमित्यर्थः 'जालासदस्साई ज्वालासहस्राणि 'पहुंचमा' ममुचन्तम् 'इंगालसहस्सा' अङ्गारमहस्राणि 'पचिविखरमाणं' पवि किरन्तम् 'पचिविसरन्तम्' मयिकिरन्तम् पौनःपुन्येन मक्षिपन्तम् 'फुलिंगजालामालासहस्सेदिं' स्फुलिङ्गज्वालामाला महस्रैः स्फुलिङ्गानाम् अग्निकणानाम् ज्वालानाथ या मालाः तासाम् सहस्रैः सहस्राग्निज्वालासमूहैः 'चवसुविवखेत्रदिपिडिया' चक्षुर्विक्षेषष्टिविद्यातम् चक्षुर्विक्षेपः चक्षुषां भ्रमः, दृष्टि प्रतिघातथ 'पकरे माणं' मकुर्वन्तम् विद्यतम् 'हुअअई रेगतेय दिप्पंतं' हुतरहातिरेकतेजो दीप्यमानम् तत्र तत्रदो वहिः तस्य अतिरेकेण तेजसा दीप्यमानम् जाज्वल्यमानम् 'जइणवेगं' जविवेगम् सर्वातिशायि वेगवन्तम् 'फुल्लकिं सुयमाणं' फुलकिंशुकसमानम् विकसित पलाशपुष्पवत् रक्तवर्णम् 'महमयं' महाभयं महद् महतां या भयं यस्मात् तम् अत्यन्तभयजनकम् यतः 'भयंकरं ' शब्दायमान 'तडतडतं' तडतड आवाजवाले 'उकासहस्सा विणिमयमाणं' हजारो उल्काओं को निकालने वाले, 'जाला सहस्साई मुं'चमाणं' हजारों ज्वालाओं को उगलने वाले 'इंगालसहस्साइं पविक्खिरमाणं' हजारों अंगारों को पार २ फेंकने वाले तथा 'फुलिंगजाला मालासहस्सेहिं' हजारों अग्निकणों की मालाओं के समुदाय से 'चक्खुविक्खेवदिट्ठी पडिघायं' आंखों में चकाचौंध उत्पन्न करने वाले, और दृष्टिका विधान करने वाले, 'हुयवहअइरेगते यदिष्यंतं' अग्नि जैसे तेज से जाज्वल्यमान 'जड़णवेगं' सर्वातिशायीवेगवाले सर्वाधिक गतियुक्त 'फुल्लकिंसुयसमाणं' विकसित पलास के पुष्प समान लाल शय्हायभान, ‘ तडतडतं ' तड तडवावा', ' उक्कासहस्साई वणिमुयमाणं ' हुन्न। उमामाने वेरना३, 'जालासहस्साइं पहुंचमाणं' हुन्न। न्वाणामो छोड़नाई 'इंगालसहरसाई' पविक्खिरमाणं' उमरी गंगाराने वारवार विश्नाई ' फुलिंगजालामालासहस्सेहिं' डलरो अग्नियोनी भाजासोथी उन्नरो तलुभाना समुहायथी 4 चक्खुत्रिक्खेवदिट्टी पडिघायं ' આંખને આંજી નાખનારૂં અને દૃષ્ટિને નાશ ४२नाई, 'हुयवहअइरेगतेयदिष्पंतं' अभिना नेवा तेभ्थी लवस्यमान, जइण वेगं' सौथी वधारे वेगवाणु, 'फुल्लकिसुयसमाणं' विकसित पवारांना पुण्य समान "
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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