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________________ ४३० भोः ! चमर | सुरेन्द्र | अमरराज ! अपायित मार्वक यावत- हीनपु चातुर्दश । अद्य न भवसि न हिते सुखमस्ति इति कृत्वा तत्रैव सिहासनगरगतो वनं परामृशति तद्ज्वलन्तम्, स्फुदन्तम्-तडतडन्तम्, उल्कासहस्राणि विनिर्मुञ्चन्तम्, ज्वालासहस्राणि मंमुञ्चन्तम्, अङ्गारसांमाणि प्रविकिरन्ते, प्रविकिरन्तर्मू, स्फुलिङ्गज्वाला मालांसहस्रैः चतुर्विक्षेपदृष्टिमविद्यांतम् अपि - असुररायं एवं वयांसी) त्रिवलिवाली भृकुटि को ललाट पर चढाकर असुरेन्द्र असुरराज उस घमरको इस प्रकार से ललकारा (हं भी चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया। अपत्प्रियपत्थिया ! जावहीणपुण्णचाउमा अज्ज न भवसि न हि ते सुहमत्यि चिक तत्थेव सोहासणवरगपु वज्र परासह ) अरे भी असुरेन्द्र असुरराज चमर ! तू क्यों व्यर्थ में अपनी मौत अपने पास बुला रहा है यावत् मुझे ज्ञान होता है कि तू हीनपुण्य चातुर्दशिक है याद रख आज तेरा अस्तित्व तेरी कुशल नहीं है - इस प्रकार कह कर वहीं पर अपने उत्तम सिंहासन पर बैठे २ शकने वज्र को उठाया (तं जलंत, फुड़ंत, तडतडत, उक्का सहस्साइं विणिमुयमाणं, जालासहस्साइं पहुंचमाणं इंगालसहस्साई पविक्खिरमाणं फुलिंगजालामाल सहस्सेहिं चक्खुविक्खेवदिट्ठपडिघा पिपकरेमाणं' और उठाकर उसने दीप्यमान, शब्द करते हुए तड़तड़ अवाजवाले, हजारों उल्काओं को छोड़ने वाले, हजारों अग्नि की ज्वालाओं को प्रकट करने वाले, हजारों अंगारों को बारअसुररायं एवं वयासी) आाणमा ४२यसियो पर मेवा रीते अत्रुटि सडावीने हेवेंन्द्र देवरान थभरने मा प्रभा पार्यो - ( हं भो चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! अपत्थियपत्थिया ! जीव हीणपुण्याचाउदसा ! अज्ज न भवसि न हि ते सुमत्थी चिकट्टु तत्थेव सीहासणवरगए व परांमुसई ) भरे અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમર ! તને મરવાની ઈચ્છા થઇ લાગે છે. ` મને લાગે છે કે તુ હીનપુણ્ય ચાતુર્દશ્ચિક છે. યાદ રાખ, માજ તારી ખેર નથી-આજ તુ ખેંચવાના નથી. આ પ્રમાણે કહીને તેણે પોતાના ઉત્તમ સિહાસન પર બેઠા બેઠા જ ત્રને હાથમાં ઉઠાવ્યું”. ( तं जलतं, फुडतं, तडतडतं, उक्कासहस्साई विणिमुयमाणं, जालासहरसाई पहुंचमाण, इंगालसहस्साई पविक्खिरमाणं २ फुलिंगजालामालसहस्सेहिं चक्खुविक्खेवं दिपिडिपायपि पक्रेमाणं ) तेथे नवसांत, शेण्डायभान, तड तड અવાજ કરતું હફ્તરા ઉકાઓને છેડ્ના, અગ્નિની .હજારા વાળા વરસાવનારૂં, 1
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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