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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ.२ म.७ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ४२७ लक्षत्रयसंख्यकात्मरक्षकदेवाः क वर्तन्ते ? यावत्करणात् त्रयस्त्रिंशत् प्रायस्त्रिंशकदेवाः सोमादिचतुर्लोकपालाः अग्रमहिप्यश्च इत्यादि संग्राह्यम् , 'कहिणं ताओ अणेगाओ' कुत्र खलु ताः अनेकाः 'अच्छराकोडीओ' अप्सरः कोटयः ? विलसन्ति ! इति यूयं तान् सर्वान् दर्शयत ! इति रीत्या यं कमपि संयोध्य कथनानन्तरं स चमरः किं ब्रवीतीत्याह-'अन्ज हणामि, अन्न बहेमि' इत्यादि । अध हन्मि अधुनैव हिनस्मि, अध व्यथयामि इदानीमेव पीडयामि 'अज्ज ममं अध अधुनैव मम 'अवसाओ' अवशाः अनधीनाः 'अच्छराओं' अप्सरसः 'वसमुवणमंतु' वंशमुपनमन्तु अधीनतामागच्छन्तु ममाधीनता स्वीकुर्वन्तु 'त्तिक ' इति कृत्या अनया रीत्या 'तं अणि' ताम् कामपि अधमाम् अनिष्टाम् अनभीप्सिताम् 'अक्त' अकान्ताम् अकमनीयाम् 'अप्पियं अमियाम् 'अमुभ' अशुभाम् अकल्याणकारिणीम् 'अमणुण्णं' अमनोज्ञाम् अमञ्झुलाम् 'अमणाम' अमनाम् मनसेऽरोचमाणाम् देवसाहस्सीओ' आत्मरक्षक देव कहां है । यहां यावत् शब्द से शक के ३३ तेत्तीस त्रायस्त्रिंशक देवोंका, सोम आदि चार लोकपालों का एवं सपरिवार अग्रमहिपियों आदि का ग्रहण किया गया है । 'कहिणं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ' कहां चे अनेक करोड़ अप्सराएँ विलास कर रही हैं ? हमें उन सबको तुम लोग बताओ-इस प्रकार चाहे जिस देव से उस चमरने कहा-और कहने के बाद ही उसने 'अज्ज हणामि' कहा कि मैं आज उन सबको मार देता हूं 'अजवहेमी' अभी ही उनका बध करता हूं। 'अज ममं-अवसाओ अच्छ. राओ' इस लिये जो अप्सराएँ मेरे आधीन नहीं हैं वे इसी वख्त मेरे 'वसमुवणमंतु' वशवर्ती बन जावे, तिकट्ट' इस रीति से 'तं अणि8 अकंतं अप्पियं, असुभं, अमणुण्णं, अमणामं फरुसं गिरं निसि. साहस्सीओ?' तेन यार यायसी MP मेट १३९००० मात्भक्ष हे ४यां छे? मी 'जाव (पर्य-त) पथी श811 33 त्रायशि देवा, न्या२ पास, स. પરિવાર પટ્ટરાઓ વગેરેના વિષયમાં પણ આ પ્રકારના પ્રશ્નો સમજી લેવા. 'कहिणं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ' तनी भने ४२।७ असामा ४यां छ? तन हे माया ये, तेने समाधान त मा प्रभाव प्रश्नो पूछया. 'अज्ज हणामि' ई मारे ते सोने भारी नामवाना छु, 'अज्ज बहेमि सत्यारे भने १५ ४२वाना . 'अज ममं अवसाओ अच्छाओ' तो असराय भारे अधान नथी तशी सत्यारे 'वसमवणमंत भारे अधीन, ..य-भने तेमनाउपाभी तरी वारी से. 'तिक' मा ४ारे तेथे ' अणिष्टुं अकंतं अप्पियं, अमुभ, अम
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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