SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२६ भगवती , फ 'पउमचरचेsभाए' पमनरवेदिकायाम पद्मचरवेदिकोपरि 'करेह' करोति 'एगंपाये' एक पाद 'समाए सुम्मा' समायां सुधर्मायां सुधर्मासमा 'करेह' करोति 'फलिहरणेणं' परिपरत्नेन 'मध्या महया' महता महता 'देणं' शब्देन घोषेण हुंकारेण 'विकसुत्तो' त्रिकृत्वः त्रिवारम् 'इंदकीले' इन्द्रफीलम् तन्नामर्थं शक्रध्वजम् गोपुरकपाटयुगालस्थानं या 'आउडेर आकुट्टयति आकुट्टितं करोति आघातयति 'भाउडिता' आकुदय च 'एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीत् 'कदिणं भो' कुत्र खलु भोः ! 'सबके देविदे देवराया' शक्रो देवेन्द्रो देवराजो वर्तते १ 'कहिणं ताओ चउरासी सामाणि साहसीओ ? कुत्र खलु ताम्रतुरशीति सामानिकसाहस्त्र्यः ? चतुरशीतिसहस्रसंख्यक सामानिकदेवाः वर्तन्ते ! 'जाव-कहिणं ताओ चचारि चउरासीईओ' कुत्र खलु तायतस्रः चतुरशीतयः 'आयरक्खदेवसाहस्सीओ ?' आत्मरक्षकदेव साहस्त्रयः पत्रिंशदधिक 'rsaatature' पद्मवर वेदिका के ऊपर 'करेह' रक्खा, और 'एग पाय' एक दूसरे पैर को 'सुहम्माए सभाए सुधर्मा सभामें रखा, घाद में 'महया सद्देणं' घडे जोर की हुंकार करके 'फलिहरयणेणं' उसने परिघरत्न से 'तिक्खुत्तो' तीन बार 'इंदकीले' इन्द्रकील को इस नामक शक्रध्वजको अथवा गोपुर के दोनों कपाटों के अर्गला के स्थानको 'आउडेड' ताडित किया 'आउडिता' ताडित करके 'एवं वयासी फिर उसने इस प्रकार कहा 'कहिणं भो । देविंदे देवराया सक्के' अरे ! देवेन्द्र देवराज शक्र कहां है ? 'कहि णं ताओ चउरासीह सामाणि साहसीओ' चौरासी हजार उसके वे सामानिक देव कहां है ? 'जाव कहिणं ताओ चत्तारि चउरासीईओ' यावत् चार चौरासी हजार अर्थात ३३६००० तीन लाख छत्तीस हजार वे उसके 'आयरक्ख 'एगं पाये पमवरवेश्याए करेइ ' तेथे पत्र पद्मवश्वेहि पर अने 'एगं पायें सुहम्माए समाए' जीने सुधर्भासमाभां भूम्या त्यार माह 'महया सहें ' अतिशय लेरथी हुअर ४शने 'फलिहरयणेणं तिक्खुतो इंदकील आउडेह' तेथे તેના પરિંદરત નામના શસ્ત્રથી ઇન્દુકીલ પર ત્રણવાર ફટકા લગાવ્યા, ( શક્રધ્વજને ઇન્દ્રકીલ કહે છે. અથવા દરવાજાના અને કમાડાના આળિયાને પણ ઇનકીલ કહે છે. ' after एवं यासी' याप्रमाणे न्द्रीस पर 'इट गावाने ते प्रभा - 'कहि णं भो ! देविंदे देवराया सक्के ? २५ - देवेन्द्र देवरा 6 छे 'कहिणं ताओ चउरासीइ सामाणियसाहस्सीओ ?' तेना ८४००० योरासी हमर सामानि देवी यछे ! 'जाव कहिणं ताओ चत्तारि बउरासीईओ आयरवस्व देव
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy