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________________ ४१६ भगवतीस वर्तते 'तेव' तत्रैव तस्मिक्षेत्र प्रदेशे 'उपगच्छ३' उपागच्छति, 'उवागच्छिता' उपागम्य 'फलिहरणं' परिघरत्नं तन्नामकाऽविशेषं 'परास' परामृशति गुहाति 'एगे अबीए' एकः अद्वितीयः सहायाभावात् बहुपरिवारत्वेऽपि विवक्षितसडायाभावाद एकत्वव्यवहारः अतएव अद्वितीयः शिशोरस्यापि द्वितीयस्याभावात् 'फलिहरयणमायाय' परिघरत्नमादाय परिघरत्नं गृहीत्वा 'महया अमरिसं' महा प्रचण्डको परोत्कर्पासहिष्णुस्वरूपम्, ब्रहमाणे' बहन धारयन 'चमरवंचाए रायढाणीए ' चमरचश्चायाः राजधान्याः मज्झं मज्झेणं' मध्यं मध्येन मध्यभागेन ' में 'सुहम्मा सभा' सुधर्मा नामको सभा श्री 'जेणेष चोप्पाले पहरण कोसे' और जहां चतुष्पाल नामका अस्त्रागार था 'तेणेव उवागच्छ वहां पर गया । 'उद्यागच्छित्ता' वहां जाकर उसने 'फलिहरयणे ' परिघरत्न नामक अस्त्रविशेषको 'परामुस' उठाया । 'एंगे अबीए ' वह यद्यपि अनेक परिवार से युक्त था तो भी विवक्षित सहायक की उसने उस समय सहायता नहीं ली इस कारण यहां उसे 'अकेला' ऐसा कहा गया है तथा - 'अबीए' इस पद द्वारा सूत्रकारने यह प्रकट किया है कि उस समय एक शिशुको भी उस अवस्थामें उसने अपने साथ नहीं लिया इस तरह यह एकाकी और अद्वितीय होकर 'फलिहरयणमायाय' परिघरत्नको लेकर 'महया अमरिसं' परोत्कर्ष को नहीं सहन करने रूप प्रचण्ड क्रोधको 'चमाणे' धारण करता हुआ यह 'चमरचंचाए रायहाणीए' चमरचंचा नामक अपनी राजधानी के 'मज्झं मज्झेणं मध्यभागसे होकर णिगच्छह, नीकला 'णिग्गच्छित्ता' 'जेणेव सुहम्मा सभा' ज्यां सुधर्मा नामनी सभा हत्ती, जेणेव चोप्पाले पहरणकोसे' ते सलामी नयां यतुष्यास नाभेर्नु शस्त्रागार हेतु' 'तेणेव उवागच्छ' त्या ते गये. 'उवागच्छित्ता' त्यांने तेथे 'फलिहरयणं' परिधरन नामनुं स्त्र 'परामुसई' व्यु 'एगे अवीए' ले ते घथा भोटा परिवारवाणेो हतो तो भालु तेथे तेगांथी डोना अशु सहाय सीधी नहीं, 'अबीए' तेथे ते वमते अव पेड બાળકને પણ સાથે લીધું ન હતું, આ રીતે એકલે અને કોઇ પણ ''સાથીદાર વિનાના તે પરિધરત્ન નામનું. શસ્ર, હાયમાં afने 'महया अमरिसं' यशवर्षं (अन्यनी उन्नति) सहन न थवाने भर उत्पन्न थयेला अधने 'वहमाणे ' धाराषु भरीने-फोटले } अतिशय अधावेशभां भावाने ते 'चमरचंचाए रायहाणीएं' यमश्यथा शब्दधानीना 'मज्झे मज्झेणं' मध्य लागमा 'णिग्गच्छ' थाने ना४जी
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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