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________________ ३८८ भगवतीने कालिकसमुत्पन्न एवं 'पंचविहाए' पञ्चविधया पञ्चपकारिफया 'पजत्तीए' पर्याप्त्या पूर्वोक्तरूपया 'पजतिभावं पर्याप्तिधर्म 'गच्छई' गच्छति प्राप्नोति 'तं जहा' तद्यथा-'आहारपजत्तीए' आहारपर्याप्त्या 'जाय भास-मणपजत्तीए' यावत्-मापा मनः पर्याप्त्या' यावत्करणात 'शरीर पर्याप्या, इन्द्रिय पर्याप्त्याः आन-माणपर्याप्त्या इति संग्राह्यम् 'तएणं से चमरे' ततः खलु स चमरः 'असुरिंदे असुरराया' अमरेन्द्रः अमुररानः 'पंचविदाए' पञ्चविधया 'पन्जत्तीए' पर्याप्त्या 'पन्जत्तिभावं' पर्याप्तिभावं 'गए समाणे गतः सन् पासो भूत्वा 'उ वीससाए ओहिणा आभोएई' ऊर्य विससया स्वाभाविकेन अब. धिना अवधिज्ञानेन आभोगयति पश्यति 'जाव-सोहम्मे कप्पे' यावत् सौ उसी समय में 'पंचविहाए' पांच प्रकार की 'पन्चत्तीए' पर्याप्सियोंसे 'पजतिभावं गच्छई' पर्याप्तिभावको प्राप्त हो गया। 'तं जहा' जिन पांच प्रकारकी पर्याप्सियो से यह प्रयासिभाय को प्राप्त हुआ-सूत्रकार उन्हीं पर्याप्तियोंको प्रकट करते हैं-'आहार पज्जतीए' आहार पर्यासि 'जाव' यावत 'भासमणपजत्तीए' भापापर्याति, मनः पर्याति. इन पर्याप्तियों से वह पर्याप्तिभाव को प्राप्त हुआ । यहाँ 'यावत्' शब्दसे 'शरीर पर्याप्ति. इन्द्रियपर्यासि और श्वासोचास इन पर्यासियोंका ग्रहण किया गया है । तएणं इस प्रकार से चमरे असुरिंदे असुरराया' वह असुरेन्द्र असुरराज चमर 'पंचविहाए' इन पूर्वोक्त स्वरूपवाली पांच प्रकारकी 'पजत्तीए' पर्याप्तियोंसे 'पजत्तिभावं गए समाणे' पर्याप्तिभाव को प्राप्त होकरके 'उड चीससाए ओहिणा आभोएइ' उर्ध्वऊँचेकी ओर स्वाभाविक रूप अवधिज्ञान से देखने लगा। कहां तक देखा तो इस बातको स्पष्ट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं कि 'पज्जत्तीए' पाक्तिमा त शत 'पज्जत्तीभावं गच्छइ' पर्याप्त यो जहा चाय पर्याप्तियो नीय प्रमाणे - आहारपज्जत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए। (૧) આહાર પર્યાપત (૨) શરીર પર્યાપ્ત (૩) ઈન્દ્રિય પર્યાપ્ત (૪) શ્વાસોચ્છવાસ पालत () भाषामन याति. "तएण से चमरे असुरिदे असुरराया' मा शत अमरेन्द्र मस२२सन यभ२. 'पंचविहाए पज्जत्तीए' पाय आरती तिमाश 'पज्जत्तिभावंगए समाणे' पर्याप्त मन्या. २मारीत पर्याप्त पामताना साथेर डावीससाए ओहिणा आभोएई' तेणे स्वाभाविध रीत अवधिज्ञानया ये જવા માંડ્યું. તેણે કયાં સુધી ઊંચે નજર નાખી તે બતાવવા માટે સરકાર કહે છે. HHHHHHHHIT
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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