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________________ -प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.२ सू.५ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३८७ सेवित्वा 'सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता' पष्टिं भक्तानि अनशनेन छित्वा 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालावसरे कालं कृत्वा 'चमरचंचाए रायहाणीए' चमरचञ्चायां राजधान्याम् 'उववायसभाए' उपपात सभायाम् 'जाव. इंदत्ताए' यावत्-इन्द्रत्वेन 'उबवण्णे' उपपन्नः, यावत्पदेन 'देवसयणिज्जसि, देवदूसंतरिए-अंगुलस्स असंखेजभागमेतीए ओगाहणाए चमरचंचायाए देविंद विरहकालसमयंसि चमरे'त्ति, देवशयनीये देवदृप्यान्तरिते अगलस्य असंख्येय भागमात्रया अवगाहनया चमरचञ्चायां देवेन्द्रविरहकालसमये चमरः चमरेन्द्रत्वेन समुत्पन्न इति संग्राह्यम्, 'तएणं से चमरे' ततः खलु स चमरः 'असुरिंदे' अमुरेन्द्रः 'असुरराया' असुरराजः 'अहुणोववन्ने अधुनोपपन्नः ता'मासियाए संलेहणाए' एक मास की प्रमाणवाली संलेखना द्वारा 'अत्ताणं जूसेत्ता' अपनी आत्मासे सेवित करके 'सहि भत्ताई' एवं साठ भक्तोंका 'अणसणाए छेदित्ता' अनशन द्वारा छेदन करके 'कालमासे कालं किच्चा' काल अवसर कालकरके 'चमरचंचाए रायहाणीए' चमरचचा नामकी राजधानीमें 'उववायसभाए' उपपातसभामें 'जाव' यावत् 'इंदत्ताए उववण्णे' इन्द्रकी पर्यायसे उत्पन्न हुआ। यहां जो यावत्पद आया है उससे 'देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेजभागमेत्ताए ओगाहणाए चमरचंचायाए देविंदविरहकालसमयसि चमरेत्ति' इस पाठका ग्रहण हुआ । अर्थात देवशय्यामें उत्पन्न हुवे । 'तएणं से चमरे' चमरेन्द्रकी पर्याय से उत्पन्न हुआ वह 'असुरिंदे' असुरेन्द्र 'असुरराया' असुरराज 'अहुणोववन्ने' मे भासना सयाराथी 'अत्ताणं जूसेत्तापाताना मात्भानी शुद्धि ४N, 'सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता' पाइयोपगमन सथा। हभियान तभणे वीस विसना मनशन દ્વારા ૬૦ ટાણુના ભેજનને પરિત્યાગ કર્યો હતો. આ રીતે ત્રીસ દિવસના ઉપવાસ ४श 'कालमासे कालं किच्चा' पनी सस२ माता ४७ ४शन 'चमरचंचाए रायहाणीए' तो यमया धानीमा 'उववायसभाए' ५५ सलामा 'जाव इंदत्ताए उवषण्णे' धन्नी पर्याय Surन थया. अहीर यावत्' ५४ भाव्यु छ तथा भा सूत्रपा8 अ ४२शयो छ-'देवसयणिज्जंसि देवसंतरिए अंगुलस्स असंखेजभागमेत्तीए ओगाहणाए चमरचंचाए देविंदविरहकालसमयसि चमरे त्ति' એટલે કે તે દેવશય્યામાં ઉત્પન્ન થયા. 'तएणं से चमरे अमुरिंदे असुराया' यभरेन्द्रनी यावे G4-1 ययेल ने मसुरेन्द्र मसुर यभ२ 'अहुणोववन्ने' मे सभये 'पंच विहाए' पांच प्राra
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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