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________________ दो अपियामि परिगृहामिलापटक-पकिरपादपस्यागच्छामिणव' यत्रैव पुढ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३उ.२ मू.४ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३७९ यामानुग्रामम् ग्रामाद् ग्रामान्तरं 'दज्जमाणे' द्रवन गच्छन् 'जेणेव' यत्रैव 'मुसुमारपुरे' सुंमुमार पुरम् , 'नयरे' नगरम् 'जेणेव' यत्रय यस्मिन्नेव स्थाने 'असो. न्यवणसंढे' अशोकवनपण्डः तन्नामकम् 'उजाणे' उद्यानम् , 'जेणेव' यत्रैव यस्मिन्नेव स्थले 'असोयवरपायवे' अशोकवरपादपः श्रेष्ठाशोकक्षः 'जेणेव' यत्रव पुढवीसिलापट्टओ' पृथिवीशिलापट्टकः 'तेणेव' तत्रैव 'उवागच्छामि' उपागच्छामि अहं समागतः 'असोगवरपायवस्स' अशोकवरपादपस्य 'हेहा' अधस्तले 'पुढवीसिलावटयंसि' पृथिवीशिलापट्टके-पृथिवी शिलापट्टकोपरि 'अट्ठमभत्त' अष्टमभक्तम् 'परिगिण्हामि' परिगृह्णामि परिगृहीतवान् , उपर्युक्ततपश्चरणप्रकारमाह-'दो विपाए' द्वौ अपि पादौ 'साहट्ट' संहत्य संकोच्य 'वग्धारियपाणो' प्रलम्बितपाणिः देशीतीर्थकर परम्पराके अनुसार 'चरमाणे' चलता हुआ 'गामाणुगामं दू. इनमाणे' एवं एक ग्रामसे दूसरे ग्रोममें विचरतार 'जेणेव सुंसुमार पुरे नयरे' जहां सुंसुमारपुर नगर था उसमें भी 'जेणेव असोयवणसंडे' जहाँ अशोक वनखंड नामका 'उन्नाणे' उद्यान था-उसमें भी 'जेणेव' जहां पर 'असोयवरपायवे' अशोकका वृक्ष था और 'जेणेव' जहां पर (पुढवीसिला पट्टओ) पृधिवी शिला पट्टक था 'तेणेव उवागच्छामि' वहां पर आया । 'उवागच्छित्ता' वहां आकरके 'असोयवर. पायवस्स हेहा' अशोकवृक्षके नीचे 'पुढवी सिलावट्टयंसि' पृथिवीशिलापट्टक के ऊपर 'अट्ठमभत्तं' अष्टमभक्तको तीन उपवास को मैंने 'परिगिण्हामि' धारण किया। 'दो वि पाए साहटु' दोनों पैरों को संकोच करके-अर्थात् चार अंगुल के व्यवधान से 'वग्धारियपाणो' दोनों हाथों को नीचे पसार करके अर्थात् दोनों हाथों को नीचे लटका करके (पुवाणुपुन्धि चरमाणे) ४२ ५२२५२१ अनुसार वियरतो तो. (गामाणुगाम . दूइज्जमाणे) मा शत ५१५ मे सामथी भी गाम (45२ ४२i ४२di (जणेव सुसुमारपुरे नयरे) यां सुसुभारपुर नामर्नु न१२ हेतु त्यांपडयो. (जेणेव असोयवणसंडे उज्जाणे) ते नगरभा मावेत अशी वनमनामना Gधानमा (जेणेव असोयवरपायवे) न्यो श्रमशा वृक्ष तु, (जेणेव पुढवीसिलापट्टओ) त म वृक्षनी नायन्या पृथ्वी परतुं (तेणेव उवागच्छामि) त्या गया (उवागच्छित्ता) त्यांन (असोयवरपायवस्स हेटा) मा वृक्षनी नीय (पुढवीसिलावट्टयंसि) यापेक्षा वाशिमा १४४ ५२ (अट्ठमभत्तं परिगिण्हामि) महम (त्र पास)नी तपस्या शने सो यो. (दो वि पाए साहह) में भारा पन्ने
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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