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________________ • प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. २ ० ३ चमरेन्द्रस्य पूर्वभवादि निरूपणम् ३६३ पतति, तद् आत्मना आहारम् आहारयति, ततः स पूर्णो वालतपस्त्री तेन उदारेण विपुलेन प्रयत्नेन प्रगृहीतेन बालतपः कर्मणा तच्चैव यावत् - भेलस्य सन्नि वेशस्य मध्यं मध्येन निर्गच्छति, पादुका - कुण्डिकादिकम् उपकरणम् चतुम्पुटव दारुमयं प्रतिग्रहम् एकान्ते अन्तं स्थापयति, वेमेलस्य सन्निवेशस्य दक्षिणपौरस्त्ये दिग्भागे अर्धनिर्वर्तनिकमण्डलम्, आलिख्य संलेखना जूपणा जूपितः प्रत्याख्यातभक्तपानः पादपापगमनं निष्यन्नः ॥ ०३ ॥ - पडेगी वही मैं खाऊंगा-सो इस तरह से वह आहार करने लग (तएण से पूरणे घालत वस्सी) इसके बाद वह पूरण घालतपस्वी (तेणं ओरालेणं) उस उदार (विउलेणं) विस्तृतभारी कठिन (पयत्तेणं) प्रदस ( पग्ग हिरण) प्रगृहीत (बालतवोकम्मेणं) बालतपस्यासे ( तं चैव जाय वेभेलस सनिवेस मज्झ मज्झेणं निग्गच्छद) पूर्वमें कहे अनुसार तामलि बालतपस्वी की तरह हो गया. यावत् वह वेभेल संनिवेश के ठीक बीचोंबीच से होकर निकला ( पाउय· कुंडिय मादीयं उबगरणं चडयं दारुमयं पडिग्गहियं एगंतमंते एडेड) और अपनी दोन खड़ाऊं को और कुंडी वगैरह उपकरणोंको तथा चार खानेवाले दार मय पात्रको एकान्त स्थलमें रख दिया । (वेभेलस्स संनिवेसस्स दा हिणपुरत्थि मे दिसीभागे अद्धनियत्तणियमंडलं आहिलिहित्ता संले हणा जुसणा जूसिए) बाद में वेभेल संनिवेशके अग्निकोण में अर्ध निर्वर्तनिक मंडल लिखकर उसने बडे प्रेमसे संलेखना धारण कर ली । ( भत्तपाणपडियाइक्खिए पाउवगमणं निवण्णे) और चारों प्रकारके आहारका परित्याग कर दिया । पुरीश. मेभ निश्चय उरीने ते प्रभाते भाडार ४२खा साग्या. (तएण से पूरणे वालतवस्सी) त्यार णाई ते मास तपस्वी यूर] (तेणं ओरालेणं) ते बहार, (विउ लेणं) विधुस, (पयत्तेणं) अहत्त, (पहिएणं) प्रगृद्धीत (बाल तवोकम्मेणं) णाद्यतपस्याना प्रभावथी (तं चेत्र जाव वेस संनिवेसस मज्झ मज्झेणं निग्गच्छइ) पूर्ववर्धित वासतपस्वी ताभंस જેવા થઈ ગયા. “તે ખેલેલ નગરની વચ્ચેથી નીકળ્યે”. ત્યાં સુધીનું સમસ્ત વ माझतपस्वी तामसी प्रमाण ४२. ( पाउय - कुंडियमादीनं उवगरणं चउप्पु ढयं दारुमयं पडिग्गाहियं एगंतमंते एढेइ) भने तेथे तेनुं उभउज, पानी पावडीयो भने थार आनांवाजा श्रेष्ठ पात्रने अन्त भय्याभां भूडी हीधु (चेभेलस्स संनिवेसस्स दाणपुरत्थमे दिसीभागे अद्ध नियत्तणिय मंडलं आहि लिहिता संलेहणा जूसणा जूसिए) त्यार पाई मेलेल नगरना अभिशुभ अर्ध निर्वर्तनि भडस (अर्धे मुंडालु) दोरीने तेथे संधारी धारण ज्यो. (भत्तपाणपडिया इक्खिए पाउवगमणं निवण्णे) भने यारे अारना आहारना त्याग .
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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