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________________ - भगवतीम गौतम ! तस्मिन् फाठे तस्मिन् समये दर जम्यूदीपे दीपे, भारते व विन्ध्यगिरिपादमूले पेमेलो नाम सभिवेशः भासीद , वर्णकः तत्र वेमेछे सनिवेशे पूणो नाम गायापतिः परिवसति-मादयः, दीमः, यथा तामले रक्तव्यता तथा प्रातल्या, नवरम्-चतुप्पुटकं दारुमयं प्रतिग्रहं कृत्या, यावविपुलम् अशनम् , पानम् , खापम् , स्वायम् , यावत्-स्वयमेव चतुप्पुटर्क गोयमी ) हे गौतम ! में इस विषयमें तुमसे कहता हूँ जो इस प्रकार से है । ( तेणं फालेणं तेणं समरणं इहेव जंयूदीवे दीवे मारहे वासे पिंझगिरि पायमूले भेले संनिवेसे होत्या पण्णी तत्य णं वे भेले संनिवेसे पूरणे नाम गाहावई परिचसइ) उस काल और उस समयमें इसी जंबू द्वीप नामके दीपमें स्थित भारतवर्ष क्षेत्रमें विंध्य. गिरिफी तलहटीमें वेभेल इस नामका एक संनिवेश था । वर्णकइस वेमेल संनिवेशमें पूरण नामका एक गाथापति रहता था। यह (अड्ढे दित्ते) घह आढय-विशेष धनाढय और दीप्त-प्रभावशाली था। (जहा तामलित्तस्स बत्तव्धया तहानेयव्वा) ताम्रलिप्त तपस्वीकी तरह इस पूरण गाधापतिकी भी वक्तव्यता जाननी चाहिये । (नवरं) ताम्रलिप्त तपस्वी की वक्तव्यता की अपेक्षा इस पूरण गाथापतिकी वक्तव्यता में जो अन्तर है वह इस मकारसे हैं-(चउप्पुडयं दारुमय पडिग्गहियं करेता) इसने जो काष्ठका पात्र बनवाया था-वह चारखाने का था। इस तरह चार खानेका काष्ठका पात्र बनवाकर (जाव विपुलं (एवं खल गोयमा!) गौतम ! यभरेन्द्रना पूर्व पर्नु वृत्तान्त नाय प्रभारी छ - (तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विझगिरि पायमूळे बेमेले संनिवेसे होत्था वण्णओ तत्थ णं बेमेले संनिवेसे पूरणे नामं गाहोवई परिवसइ) ते णे अन ते सभये, भाभदायमा मावा ભારત વર્ષમાં વિશ્વાચળ પર્વતની તલેટીમાં ભેલ નામનું એક ગામ હતું : વન ચંપા નગરી પ્રમાણે સમજવું. તે બેભેલ નગરમાં પૂરણ નામે એક ગાથાપતિ (134) रखता s a (अड़े दित्ते) घो। धनाढय भने प्रभावशाणी ता. जहानामलित्तस्स वत्तव्यया तहा नेयन्या) तामसिस (तामसी पवन ARTH प्रभाव पनि ५ सभा, (नवर) ५२तु मलीन पर्यन तi पाना वनमा साटो तापत भावा. (चउप्पुडयंदारुमयं पडिग्गहियं करेता) પરણે પ્રવ્રાજ્ય અંગીકાર કરતી વખતે ચાર ખાનાવાળું કાષ્ઠપાત્ર બનાવરાવ્યું હતું. (जाव विपुलं असणं पाणं खाइम जार सयमेव चउपुडयं दारुमयं पडिग्गदिए HAL
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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