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________________ ३.४८ भगवती सूत्रे ---- मनका वो, पुलिन्दा वा, एकम् महद् अरण्यं वा, गर्व वा, दुर्गे वा, दरीं वा, विषमं वा निश्राय सुमहद् अपि अश्ववलं वा, हस्तित्रलं या, योधवलं वा, धनुर्वलं वा आकलयन्ति, एवमेव अमुरकुमारा अपि देवाः नान्यत्र (नन्त्रत्र) भर्हतो ना, अच्चैत्यानि वा, अनगारान् वा भावितात्मनो निश्राय ऊर्ध्वम् उत्पवन्ति, - यावत् - सौधर्मः कल्पः सर्वेऽपि भगवन् ! असुरकुमारा देवाः ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति जाति के लोग, धव्पर जाति के लोग टंकणजाति के लोग, भृतुपजाति के लोग, प्रश्नकजाति के लोग (पुलिंदाड़वा ) पुंलिन्द जाति के लोग ( एवं महं रण्णं वा ) एक बडे भारी जंगल का ( वा) खड्डेका ( दुग्गं या) दुर्ग का (दरिं वा ) गुफा का (विसवं वा ) विषमप्रदेश का खड्डों और वृक्षों से युक्त हुए स्थान का (पव्ययं वा ) अथवा पर्वत का ( णीसाए ) आश्रय करके (सुमहलमवि आसवलं वा ) घहुनपडे बलिष्ठ अश्व सैनिकों को (हत्थियलं वा) अथवा हाथियों के लश्कर को, (जोहबलं वा) या योद्धाओं के सैन्य को, ( धणुचलं वा) अथवा धनुर्धारियों की सेना को ( आगलेति ) आकुल व्याकुल करने की अर्थात् जीतने की हिम्मत करते हैं (एवामेव ) इसी तरह से (असुरकुमारा वि देवा) असुरकुमार देव भी (णण्णत्थं अरिहंते वा, अरिहंतचेयाणि वा अणगारे वा भावियप्पणी निस्साए ) निश्चय से अरिहंत के अनगार, अथवा भावितात्मा साधुओं के सहारे के प्रभाव से (उड्ढ उप्पयंति) ऊँचे उडते हैं अर्थात् उर्ध्वलोक में (जाव सोहम्मो कप्पो) यावत् सौधर्मकल्पतक जाते हैं । ( सव्वे लतिना साठी, भुतुयन्नतिना सो प्रश्नम्भतिना हो। (पुलिंदाइ वा ) भने पुसि लतिना सोडे (एगं महं रण्णं वा ) ये गाढ गाना अथवा (गढ वा) पाने, (दुर्गागं वो) दुर्गन), (दरिया) गुझना (विसर्व वा) विषभ स्थानना-वृक्षो भने भाडाभोथी युक्त स्थानना, (पञ्चयं वा अथवा पर्वतन (णीसाएं) माश्रय सहने ( सुमदल्लमवि आसबलं वा ) धामणवान अश्वहणनो अथवा गहना, (जोहवळं वा धणुबळं वा) चायध्ण योद्धात्मानो अथवा धनुर्धारियोनी सेनानी ( आगळेति) परान्न्य हरवानी हिमत हरीश छे, (एवामेत्र) मे प्रभा (असुरकुमारा वि देवा ) सुरभार देवे। (त्थं अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए ) અહં તે ભગવાના, અણુગારા અથવા ભાવિતાત્મા સાધુગ્માની સહાયથી અવશ્ય (उड्ड उप्पयंति जाव सोहम्मे कप्पो) उध्वसमां सौधर्मस्य पर्यन्त छे. ン
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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