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________________ ३३६ भगवती‍ $ ( ' गमिष्यन्ति च । पुनः गौतमः तेषां तिर्यग्गमनशक्ति पृच्छति- 'भविवं मंते !" इत्यादि । हे भगवन । अमुरकुमाराणां तेषां 'देवाणं देवानाम् 'तिरिक्ाति बिसये' तिर्यग्गगतिविषयः पणने मतप्तः अस्ति ? अर्थात् ते देवाः स्वस्थानात् तिर्यगू गन्तुं समर्थाः सन्ति ? किम् | भगवान स्वीकरोति- 'हंता, मस्थि' । हे गौतम! तेषां तिर्यग्गमनसामर्थ्यम् 'अत्यि' अस्ति | गौतम स्तिर्यगुगमनावधि पृच्छति - 'केवड्यं च णं भंते । ' इत्यादि । हे भगवन्! कियत्पर्यन्तम् असुरकुमाराणां देवानाम् ' तिरियं गड़विसर तिर्यगूगतिविष भूतपूर्वशत्रुजन को दुःख उत्पन्न करने के लिये, तथा पूर्वपरिचित मित्रजन को सुख शांति पहुँचाने के लिये ये असुरकुमार देव तृतीय पृथिवी में पहिले गये है, वर्तमान में जाते है और आगे भी वहां जायेंगे। 1 अब गौतम स्वामी इनकी तिर्यग्गमन करने की शक्ति के विषय में प्रभु से पूछने के अभिप्राय से प्रश्न करते है- 'अत्विर्ण भंते ।" हे भदन्त | 'असुरकुमाराणं देवाणं' इन असुरकुमार देवों का 'तिरि यगइविसए पण्णत्ते' तिर्यग्गति का विषय कहा गया है क्या ? अर्थात् ये असुरकुमार देव अपने स्थान से तिर्यग जाने के लिये समर्थ हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते है- 'हंता अस्थि' गौतम! हां ये असुरकुमार देव अपने स्थान से तिर्यग जाने के लिये समर्थ है । अर्थात इनमें तिर्यग जानेकी सामर्थ्य है । 'असुरकुमार देवों में तिर्यग्गमन करने की सामर्थ्य है' यह प्रभु द्वारा कही गई बात को सुनकर गौतम प्रभु से पुनःपश्न करते है कि 'केवइयं च णं भंते! ટુ ગૌતમ ! પાતાના પૂર્વ ભવના શત્રુઓને દુ:ખ દેવાને માટે, તથા પૂર્વ પરિચિત મિત્રાને સુખ શાંતિ દેવાને માટે અસુરકુમાર દવે ત્રીજી પૃથ્વી સુધી ભૂતકાળમાં જતાં હતા, વર્તમાનકાળમાં પણ જાય છે અને ભવિષ્યમાં પણ જશે. હવે અસુરકુમારીની તિરછીતની શક્તિ જાણવા માટે ગૌતમ સ્વામી નીચેન प्रश्न पूछे छे-“अत्थिणं भंते ! " हे अहन्त ! "असुरकुमाराणं- देवाणं तिरियगर विसर पण्णत्ते ?" सुरभार हेवोनी तिर्यग्गति (तिरछी गति) विषेशु छे ! એટલે કે શુ અસુરકુમાર દેવા તેમના સ્થાનથી તિરછી દિશામાં ગતિ કરવાને સમર્થ છે ? महावीर अलु तेनेो भवाण साये छे- “हंता अस्थि" हे गौतम ! असुरशुभार સ્યા તિરછી દિશામાં જવાને પણ સમય છે. ભગવાનને મુખે આ જવા. સાંભળીને तेनुं प्रभाष लघुवाने भाटे गौतम स्वामी या प्रभा प्रश्न पूछे छे - "केवइयं च णं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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