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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. २ सू.१ भगवत्समवसरणम् चरमनिरूपणश्च ३३५ 'गमिस्संति य' गमिष्यन्ति च । यावत्करणात् प्रथमद्वितीयत्तीयचतुर्यपञ्चमपठाधोनरकाः संग्राह्याः । गौतमः पुनःपृच्छति-'किं पत्तियं णं भंते !' इ. त्यादि। हे भगवन् ! कि प्रत्ययं किं कारणम् खलु ते असुरकुमारा देवाः 'तचं' तृतीयां 'पुहवि' पृथिवीं गयाय' गताश्च 'गमिस्संति य' गमिष्यन्ति च? अर्थात् तृतीयपृथिवीपर्यन्तं तेषां गमने को हेतुः ? भगवानाह'गोयमा पुबवेरियस्स' इत्यादि । हे गौतम ! पूर्ववैरिकस्य भूतपूर्वशत्रुजनस्य वा 'वेदण उदीरणयाए' वेदनोदीरणतायै दुःखोत्पादनार्थम् 'पुवसंगइअस्स' पूर्वसागतिकस्य पूर्वपरिचितमित्रस्य वा 'वेयणउवसामणयाए' वेदनोपशमनतायै-वेदनोपशमनार्थ सुखशान्तिकरणाय ‘एवं खलु' उक्तरीत्या असुर कुमारा देवाः 'तच' तृतीयां 'पुढवि' पृथिवीं 'गया य' गताश्च 'गमिस्संति य' आगे भी वहींतक जायेगे। इस प्रकार का कथन प्रभु के श्रीमुख से अवगत कर पुनःगौतम स्वामी उनसे 'वहांतक जाने में कारण क्या है' इस बात को पूछते हैं- 'किं पत्तियं णं भंते ! असुरकुमार देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य' ये असुरकुमार देव तीसरी पृथिवी तक जाते है, पहिले भी वहींतक गये है और आगे भी वहीं तक जायेंगे- सो हे भदन्त ! इन असुरकुमार देवों को वहीं तक जाने में ऐसा क्या कारण है जो ये वहीं तक जाते है, गये है और जायेंगे? आगे न गये है, न जाते है और न जायेंगे ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु उन से इस विषय में कारण की स्पटता करने के निमित्त कहते हैं-'गोयमा ! पुन्ववेरियस्स वा वेदण उदीरणयाए पुत्वसंगइस्स चा वेयण उवसामणयाए एवं खल असुरकुमार देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य' हे गौतम! अपने મહાવીર પ્રભુના શ્રીમુખે આ જવાબ સાંભળીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને नीय प्रश्न पूछे छे-"कि पत्तियं णं भंते ! असुरकुमारदेवा तच्च पुढनि गया य गमिस्संति यो प्रलो ! अस२भार व मारणे श्री पी सुधी भूतકાળમાં જતા હતા, વર્તમાનમાં જાય છે અને ભવિષ્યમાં પણ જવાના છે? એટલે કે ત્રીજી નરક સુધી ત્રણે કાળમાં તેઓ જાય છે, નની પાછળ શું કારણ રહેલું છે ? આ -ત્યાં શા માટે જાય છે? ત્યારે તેનું કારણ બતાવવા માટે મહાવીર પ્રભુ નીચે પ્રમાણે જવાબ આપે છે– "गोयमा ! पुबवेरियस्स वा वेयण उदीरणयाए पुनसंगइस्स वा वेयण उक सामणयाए एवं खलु अमरकुमारा देवा तच्च पुढवि गया य गमिस्संति य"
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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