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________________ भगवती इत्यादि । हे भगवन ! 'कवाय पण किया खल कियदवाधिक 'ते' तेषाम् अमरकुमाराणां देवानाम् ' भई गतिविसर्ग' अधोगमनविषयकम् 'पभूत' मा त्वम् सामयम् 'पण' माप्तम् फयितम् , फियदधोलोकपर्यन्तं ते गन्तुं स. मर्याः ? इति मनः । गगरानाह-'गोयमा! जार-अहे । इत्यादि। हे गौतम ! ते अमुरफुमाराः 'जार-भद्दे' यारव-अधः 'सनमाए. पुढवीए सप्तम्याः पृपिया, अर्थात स्वस्थानात् अधःसप्तमपृथिवीलोकपर्यन्तं गन्तु समर्याः, गमनशक्तिमाप्रमेतत्सतिपादितम् ननु कदानित तत्पर्यन्तं गताः, गच्छन्ति, गमिष्यन्ति वा किन्तु 'त' तृतीयां पुनः 'पुर्वि' पृथिवी ' गयाय ' गताम मार देवों में अपने स्थान से अधोगमन करने की शनि अवश्य ही है। जब प्रभु के मुख से 'असुरकुमार देवों में अधोगमन करत की शक्ति अवश्य ही है। इस पात को सुना-तय प्रभु से उन्हान पुनःपूछा कि केवयंच ण प असरळमाराणं देवाणं अहे गात विसए पण्णत्ते' हे भदन्त ! उन असुरक्रमार देवोंकी शक्ति नाच जाने की कहांतक की है ? इस प्रश्न का आशय यह है कि असुर कुमार देव अपने स्थान से नीचे कहां तक जा सकते हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि- 'गोयमा ! जाव अहे सत्तमाए पुढवीए' हे गौतम ! उन असुरकुमार देवों में अपने स्थान से नाच जाने की शक्ति इतनी है कि वे ससन पृथिवी तक जा सकते है। परन्तु वहांतक वे आजतक गये नहीं है न जाते हैं और न आग भी जायंगे। यह तो केवल वहां तक जाने की शक्तिमात्र का प्रतिपादन किया है। वे तो 'तच्चं पुढवि गया य गमिस्संति य. तृतीय पृथिवीतक ही जाते हैं, पहिले भी वहींतक गये हैं और ! त्यारे गौतम स्वामी मान न पूछे छ-"केवइयं च णं पभू ते असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसए पण्णते?" प्रा ! असुरशुभार वो तभना સ્થાનથી કયાં સુધી નીચે જઈ શકે છે? ત્યારે મહાવીર પ્રભુ જવાબ આપે છે— "गोयमा ! जाव अहे सत्तमाए पुढवीए" गौतम! त मसुरभार हे नाम સાતમી પૃથ્વી સુધી સાતમી નરક સુધી–જવાને સમર્થ છે, પણ તેઓ ત્યાં સુધી ભૂતકાળમાં કદી ગયા નથી, વર્તમાનમાં જતા નથી અને ભવિષ્યમાં જશે પણ નહીં. तभनु सामथ्य मतावाने भाटे 5431 3थन छ. "तचं प्रदवि गया य आमिति य" परतु तसा परे२ तात्री पृथ्वी सुधी भुतभा गया तl, વર્તમાનમાં જાય છે અને ભવિષ્યમાં પણ ત્રીજી પૃથ્વી સુધી જ જશે.'
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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