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________________ म.टी. श.३ उ.१ सू.२९ सनत्कुमारस्यभवमिध्यादिप्रश्नस्वरूपनिरूपणम् ३०५ हितकामुकः हितं हिते निवन्धनं वस्तु तस्य कामुकः हितचिन्तकः हितेच्छुः 'सुहकामए' सुखकामुकः सुखम् आनन्दरूपम् तदिच्छुः 'पत्यकामए' पथ्यकामुकः पथ्य दुःखत्राणं तत्कामुकः दुःख निवारणेच्छुः 'आणुकंपिए' आनुकम्पिकः अनुकम्पयाचरतीति आनुकम्पिकः अनुकम्पाशीलः दयाकारकः करुणावरुणालयत्वात 'निस्सेयसिए' श्रेयसिकः निश्रेयसं मोक्षः तत्र नियुक्त इवेति नैश्रेयसिका मोक्षाभिलापी'हियसुहनिस्सेयसिए' हितमुखनैश्रेयसिकः कल्याणेच्छुः 'हियमुहनिस्सेसकामए' हितसुखनिःशेपकामुक हितरूपं यत्सुखं तन्निःशेपाणां सर्वपां कामयते समीहते यः स तथा तत् तस्मात् 'तेणटेणं' तेनार्थेन तेन हेतुना हे गौतम ! 'सणकुमारेणं भवसिद्धिए जाव-नो अचरिमे' सनत्कुमारः खलु भवसिद्धिकः यावत्-चरमः अनेक श्रमणियोंका, 'यहणं सावयाणं' अनेक श्रावकोंका, 'बहणं सावियाणं' अनेक श्राविकाओंका 'हियकामए' हितकामुक हैं । सुख की कारणभूत जो वस्तु है वह यहां हितशब्द से ली गई हैं। 'सहकामुए' उन्हें आनन्दरूप सुख प्राप्त होते रहें-इस यातका वह इच्छुक है । 'पत्थकामए' पथ्यकामुक है. दुःख से वे सदा बचे रहे इस बात का वह अभिलापी हैं। 'आणुकंपिए' क्यों कि वह करणा का वरुणालयसमुद्र होने के कारण उन पर सदा दयाशील है। 'निस्सेयसिए' उन्हें मोक्षप्राप्त हो इस यातका वह अभिलापी है। 'हियसुहनिस्सेसकामए' हितरूप सुख इन सब को प्राप्त होते रहे इस बातकी वह कामना करते रहते है। 'से तेण?णं गोयमा । सणंकुमारेणं भवसिद्धिए जाच णो अचरिमे' इस कारण हे गौतम । मैंने ऐसा कहा है कि सनत्कुमार भवसिद्धिक है यावत् चरम है। सावयाणं वहणं सावियाणं" मन श्राप भने श्रीवासार्नु "हियकामा " હિત ચાહનારા છે. અહીં સુખ આપનારી વસ્તુને હિત પદથી ગ્રહણ કરવામાં આવી છે. "सुहकामए" तेभने मान३५ सुमनी प्राप्ति थाय, पानी मनावा छ, "पत्थकामए" तसा तभना पथ्याभु छ–गरखेतमा सह भुत रहे मेवी मनिलाषावार छे, "आणुकंपिए" ते ४२ाना सा२ पाथी तमना ५२ अनु रामनारा छ, "निस्सेयसिए" भने भाक्ष प्राप्त थाय, मेवी मनिसाका रामना। छ, "हियसहनिस्सेसकामए" ते सोन हित३५ सुमनी प्राप्ति थाय मेवी धमनापाका छे. "से तेणट्रेणं गोयमा । सणकुमारेणं भवसिद्धिए जाव णो अचरिमे। गौतम! ते २ में मेj j४ सनछुमार ससिद्धिथी
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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