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________________ -३०४ भगवती , ! " बोहिए' सुलभवोधिक एव, नो 'दुल्लभवोटिए' दुर्लभवोधिकः तथैव 'भाराहए' artune ga at 'frराहिए' विराधकः एवं 'चरमे' चरम एव नो 'अचरमे' भवरमः इति रीत्या सनत्कुमारे सर्व 'पसत्यं प्रशस्तम् 'नेग' नेतम्पम् ज्ञातव्यम् नो अमशस्तम् अभवसिद्धयादिकमिति भावः । 'से केणट्टे णं भंते ! एवंger' तत् केनार्थेन भदन्त । एवम् उच्यते - सनत्कुमारो भवसिद्धिकत्वादि प्रशस्तगुणसम्पन्न एवेत्यत्र को हेतुः ? भगवान् उत्तरयति - 'गोयमा ! सणंमारे' इत्यादि । हे गौतम ! सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवराजः 'वही' बहूनाम् अनेकेषाम् 'समणाणं' श्रमणानां साधूनाम् ' बहूणं यदीनाम् भनेका साम् 'समणीणं' श्रमणीनाम् साध्वीनाम् 'वहणं' बहनाम् 'सावयाणं' श्रावकाणाम् देशविरतानाम् 'बहूणं यद्दीनाम् 'साविभाणं' श्राविकाणाम् 'हियकामए' होकर 'परिजससारण' परीत संसारवाला ही हूँ। 'नो दुलहबोहिए ' दुर्लभयोधियाला न होकर 'सुलभवोहिए सुलभयोधिवाले ही है। 'नो विराहिए' विराधक न होकर 'आराहए' आराधक ही है। 'नो अचरमे' अचरम न होकर 'चरिमे' चरम ही है । इस रीति से मनकुमार में सब 'पसत्थं नेयत्वं' प्रशस्त ही जाननाचाहिये। 'नो अ प्रशस्तं ' अभवसिद्ध्यादिक अप्रशस्तगुण उसमें नहीं हैं । 'से केणद्वेणं भंते ! एवं वुचइ' गौतम पुनःप्रभु से पूछते हैं कि हे भदन्त । सनत्कु मार भवसिद्धिकत्व आदिप्रशस्त गुणों से सम्पन्न ही है इस कथन में कारण - हेतु क्या है । तब इसका उत्तर देते हुए भगवान उनसे कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'सणकुमारे देविदे देवराया' देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार 'यहणं समणाणं, बहूणं समणीणं अनेक श्रमणोंका, 15 1 संसारए" परिमित ससारवाणा छे. " नो दुल्लहबोहिए " तेथेो इस भोषि नथा पशु " सुलभवोहिए" सुबल मोधि छे. "नो विराहिए- आराहए" ते विशेष नथी पशु माराध ०४ छे " नो अचरिमे - चरिमे"तेयो अथरभ नथी च यरभ के. “पसत्थं नेयव्वं” मा रीते सनत्कुमारंभां मघा प्रशस्त गुथे ? छे सेम लघुकुं "नो अप्रशस्तं " तेमनामां भगवसिद्धिद्धि आहि अप्रशस्त गुम्यो नथी. " से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ । " गौतम पूछे है, "हे सहन्त ! आप શા કારણે એવું કહેા છે કે સનત્કુમાર ભસિદ્ધિક આદિ પ્રશસ્ત ગુર્ષોથી યુક્ત છે ! त्यारे महावीर अनु या प्रमाणे वाण माये - " गोयमा !" ३ गौतम ! 'सकुमारे देविंदे देवराया " देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहूणं समणाणं, वहणं समणीणं " भने श्रम (साधुओ) मने श्रभथियो (साध्वीमी)नुं," बहूणं 66 66
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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