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________________ २७४. भगवती मूलम् - "सकस्स णं भंते! देविंदस्स, देवरण्णो विमाणे हिंतो ईसाणस्स देविस, देवरण्णो विमाणा ईसि उच्चयचेव, ईसि उन्नयतरा चैत्र, ईसाणस्स देविंदस्स वा देवरण्णो विमाणेहिंतो सकस्स देविंदस्स; देवरण्णो विमाणा ईसिंणीययराचेव, ईसि निण्णयराचेच ? 'हंता, गोयमा ! सकस्स तं चैव सवं नेय' । 'से केणणं भंते!' गोयमा ! से जहानामए करले सिया - देसे उच्चे, देसे उन्नए, देसे णीए; देसे निण्णे, से तेणद्वेणं गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स; देवरण्णो जाव - इसि निण्णयराचेत्र " । “ पभूणं भंते! सक्के देविंदे, देवराया देसाणस्स देविदस्स; देवरण्णो अंतिअं पाउन्भवित्तए ? हन्ता, पभू सेणं भंते! किं आढायमाणे पभू, अणाढायमाणे पभू ? गोयमा ! आढायमाणे पभू, नो अणाढायमाणे पभू । पभूणं भंते इसाणे देविदे, देवराया स देविंदस्स, देवरण्णो अंतिअं पाउन्भवित्तए ! 'हंता, पभू ! ' सेणं भंते! किं आढायमाणे पभूः अणाढायमाणे पभु ! 'गोयमा ! आढायमाणे त्रिपभु अणा -ज्झिहिइ जाव अंतं काहिए) हे गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जायगा वहीं पर सिद्ध होगा - यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा || टीकार्थ - इस सूत्र की व्याख्या स्पष्ट है | सू० २६ ॥ देवा से सिज्झिहिर जान अंतं काहिइ) हे गौतम! . ते महाविड क्षेत्रमां नन्म सेथेત્યાંથી મરીને સિદ્ધગતિ પામશે, અને સમસ્તદુઃખાના અંત લાવી દેશે. टीअर्थ सूत्रार्थी सरण होवाथी तेना पर १५ विवेशन ४२वानी ४३२ રહેતી નથી ા સૂ૦ ૨૬ ૫
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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