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________________ २६८ भगवतीमुत्रे उद्विग्नाः उद्वेगयुक्ताः, 'संजायगया' संज्ञानमया: 'ओ' सर्वतः 'समता' समन्ततः सम्पूर्णरीत्या 'आधावेति' आधावन्ति पायन्ते 'परिवर्तिति' परि भावन्ति परितः इतस्ततः पलायन्ते भधाय परिधाय 'अन्न' अन्योन्यस्य कार्य 'समतुरंगेमाणा' समालिप्यन्तः 'चिति' तिष्ठन्ति, 'तपूर्ण' ततः ख से 'बलिचंचारामहावित्यन्नया' वलिचञ्चाराजधानी वास्तव्याः 'बहवे' बहवः असुरकुमारा देवाः देव्यथ 'ईसान' ईशानं देवेन्द्र देवराजं 'परिचयं परि कृषितम् अतिकोपयुक्तं 'जाणता' ज्ञात्वा 'ईमाणम्स' ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'तं दिव' तां दिव्याम् अद्भुतां 'देव' देवर्द्धिम् 'दिव्वं देवज्जुई' दिव्यां देवद्युतिम् 'दिव्वं देवाणुभागं' दिव्यं देवानुमानम् 'दिव्वं तेयले ' हो गये 'बिग' उदेगयुक्त घन गये, 'संजापभया' उनके रोम २ में भय का संचार हो गया और वे 'मव्वओ' सघ तरफ 'समंता' स म्पूर्ण रीति से 'परिधावति' इधर से उधर भागने लग गये 'अन्नमनस कार्य समतुरगेमाणा चिट्ठति' और इधर उधर दौडने में उनकी ऐसी हालत होगई कि ये भय के मारे एक दूसरे के शरीर से चिपट गये । 'ए' इसके बाद उन 'बलिचंचावहाणिवत्थन्वया' बलि राजधानी के निवासी 'पहवे' पहुत से असुरकुमार देवाने और देवियोंने 'ईसाणं देविदं देवराज' देवेन्द्र देवराज ईशान को इस प्रकार की स्थिति से 'परिकुवियं' अतिकोप से युक्त 'जाणित्ता' जानकर के 'ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो तं देवेन्द्र देवराज ईशान की उस 'दिव्वं' दिव्य - अद्भुत - 'देविड्ढि देवद्धि को, 'दिव्वं देवज्जुइ" दिव्य देवति को, 'दिव्वं देवाणुभागं' दिव्य देवानुभाग को 'दिव्वं तेय लेस्से' भुण था गया, "उन्चिग्गा" उद्विग्न (भिन्नातुर) ननी गया. 'संजायभया " ने तेभना रोभ शभभां लया संन्यार था. "सव्वओ समता परिघावेंति" गलराटने (6 रथे तेथे मघां यारे तर होडा होड ४२वा साग्या. "अन्नमनस्सकार्य समतुर गेमाणा चिहंति " ભયને કારણે તેઓ એક ખીજાનાં શરીરને વળગી ગયા. ari afe चारायहाणिवत्थन्वया " न्यारे तिथयां राज्धानीभां रहेना मसुरठुमार द्देव देवीयोनी उपशत हासत था त्यारे " इमाणं देविंद देवराजं परिकुत्रियं जाणित्ता " तेभने मान थयु है हेवेन्द्र देवशन ईशान तेभना पर अतिશય કપાયમાન થયા છે. આ પ્રકારનું ભાન થતા Hruta fire देवरणो तं दिव्वं देवि, दिव्वं देवज्जुई, दिव्वं देवाणुभागं, दिव्त्रं तेयलेस्तं" "शानंદેવલાકના રુવેન્દ્ર દેવરાજની દિવ્ય દેવદ્ધિ, અનુપમ દિવ્ય દેવકાન્તિ, વિલક્ષણુ દેવપ્રભાવ 66
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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