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________________ २६६ भगवतीस स्वात् 'सपविख' सपक्षम् परितः चतुर्दिक्षु 'सपडिदिसि' समतिदिशम् ईशानादि चतुः कोणेषु 'राममिलोएड ' समभिलोकयति 'तपणं मा ततः खलु सा ' मलिचंचारापहाणी ईसाणेणं देवि देणं देवरमा अहे रापर्विस सपडिदिर्सि समभिलोइयासमाणी' बलिराजधानी ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन अः उपरि परितः समन्तात् समभिलोकिता सती 'ते' तेन 'दिव्वप्यभावेणं' दिव्य प्रभावेण उष्णतेजोलेश्यारूपेण तेजसा 'इंगालभूमा' अङ्गारभूता मज्ययकाष्ठभूता संतप्तायो गोलवत्संजाना (लोहगोलकर इत्यर्थः) 'मुम्मृरभू' मुरमुरभूता तु. पाग्नियसंपन्ना 'छारिय-भूआ' भस्मीभूता इव 'तत्तकवेल्डकन्भूमा' तप्तकटाहरू परिचचाराजधानी को 'अहे' जो कि उसके निवास से नीचे थी 'पक्खि मपडिदिसि' चारों दिशाओं से चारों तरफ से और चारों ही ईशान आदि कोनोंकी ओर से अर्थात् वहीं बैठे २ उसने उसे नीचे ऊँचे सब तरफ से 'समभिलोए' देखा, इस तरह 'सा बलिचारायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरन्ना अहे पक्खि सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी' उस देवेन्द्र देवराज ईशान के द्वारा नीचे ऊँचे चारों दिशाओं एवं विदिशाओं की तरफ से देखी गई वह पलिचंचाराजधानो उसी समय 'तेणं दिव्वप्यभावेणं' उसके उस दिव्यप्रभाव से - उष्ण तेजोलेश्यारूप अपूर्व शक्ति से 'इंगालकभूया' जलते हुए काष्ठ के जैसी हो गई, अथवा संतप्त लोहे के गोले जैसी बन गई। 'मुम्मुरभूया' पाग्नि के जैसी हो गई अर्थात् जैसे तुपाग्नि धीरे २ सुलगती रहती है वह भी इसी तरह से धीरे २ सुलगने लग गई । 'छारिया यांतक कि वह किसी २ प्रदेश में बिल"बलिचचा रायहाणी" होधावेशलरी दृष्टिथी सिया राजधानी "अहे" ने तेमना निवासस्थाननी नायेनी मालुमे जावेही ती, "सपक्खि सर्पडिदिसिं सममिलाएइ " तेनी थारे हिशाओमी तथा यारे विहिशायामां थानाहि यारे भूलाभां નજર નાખી ( તન્નેવેશ્યા છેાડી ) તેમની કેધાવેશભરી દૃષ્ટિ અલિયા રાજધાની પર પડતાં તે ખલિચ ચાના તથા તેમાં નિવાસકરનારા અસુરકુમારદિના શા હાલ થયા ત नीयेनां सूत्रोभां भताभ्यु छे-" तेणं दिव्वप्यभावेणं" तेमना ते दिव्यप्रभावथीतेभनी उष्णु तेलेसेश्याना प्रभावथी मतियया राज्यानी "इंगालन्यूया" सजगता કાષ્ઠના જેવી અથવા તપાવેલા લેઢાના ગાળા જેવી ખની ગઇ, सुम्मुरन्भूया તાગ્નિ જેવી રીતે ભૂસાને સળગાવવાથી ધીમે ધીમે સળગ્યા કરે धीमे सगगवा सागी, “ छारियन्भूषा " अर्थ अर्थ प्रदेशमां तो ते 46 27 છે એવી રીતે ખીમે मणीने राज्य वी
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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