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________________ म. टीका श. ३ उ.१ सू. २५ ईशानेन्द्रकृतकोपस्वरूप निरुपणम् २५९ ओ य ईसाणं देविंदं, देवरायं आदति, जाव-पज्जुवासंति, इंसाणस्स देविंदस्त देवरणो आणा-उववायवयण-निदेसे चिट्ठति, एवं खलु गोयमा ! ईसाणेणं देविदेणं, देवरपणा सा दिव्वा देविट्टी जाव-अभिसमण्णागया ॥ सू० २५ ॥ छाया-ततः स ईशानो देवेन्द्रः, देवरानस्तेपाम् ईशानकल्पवासिनाए बहूनाम् वैमानिकानाम् देवानाञ्च देवीनाञ्च अन्तिके इमम् अर्थ श्रुत्वा, निझम्य आसुसुप्तः, यावत् मिसमिययन तत्रैव शयनीयवरगतस्विचलिकां भ्रूकुटि मलाटे संहत्य बलिचचाराजधानीम् अधः, सपक्षम्, सप्रतिदिशम् रामभिलोकयति, ततः 'तएणं ईसाणे देविदे देवराया' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तएण) इसके बाद देविंदे देवराया ईसाणे) देवेन्द्र देवराज ईशान ने (तसिं ईसाणकप्पवासीणं) वहणं वेमाणियाणं देवाणाय देवीण य अंतिए एयमद्रं सोचा निमम्म) उन ईशानकल्पमें रहने वाले अनेक धैमानिक देवों और देवियों के मुखसे जय इस यातको सुना और उसका विचार किया तो सुनकरके और विचार करके वह (आसुरुत्ते) उमी समय क्रोध से भर गये (जाव मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिजवरगये) यावत् मिसमिसाता हुआ वह वहीं पर देवशय्या में बैठा रहा (निवलियं भिडिं निडाले साहु) और वहीं से तीन बल पडें ऐसी अपनी भृकुटिको कपाल में चढाकर (बलि____ "तएणं ईसाणे देविंदे देवराया" त्या सूत्रार्थ - (तएणं देविंदे देवराया ईसाणे) ते देवेन्द्र, हेराय थाने . (तेसिं ईसाणकप्पवासीणं वहणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अंतिए एयमढे सोचा निसम्म) त ६५मा रहेन भने पनि यो मन हेवियाने મુખે તે વાત સાંભળી અને તેણે તે વાતનો વિચાર કર્યો. તે વાત સાંભળીને તથા તે पातना विचार शन (आसुरुत्ते) तेन डोपानि माझी ४यो, तेथे शैद्र३५ धारण यु (जाव मिसिमिसेमाणे) अधाशी in श्ययावतो ते (तत्थेव सयणिज्जवरगये) त्यir पशच्या ५२ मेसी रह्यो, (तिवलियं भिउडि निडाले सांहद्द) गन ४ागमा त्र २मामी ५ वी शत प्रवटियापीन (वलिचंचारायहाणि अहे सपक्खि सपडिदिसि समभिलोएइ) तेरी गलियया यानीनी नीयनी मान्मां, यारे पल
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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