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________________ म. टीका श. ३. उ. १ सू० २४ देवकृततामलेः शरीरविडम्बननिरूपणम् २४७ आकर्ष विकर्षिकाम् कुर्वन्ति, हीलयित्वा यावत् - आकर्षविकर्षिकाम् कृत्वा एकान्ते एडयन्ति यामेव दिशम् प्रादुर्भूताः तामेव दिशं प्रतिगताः ततस्ते ईशानकल्पवासिनो बहवो वैमानिका देवाथ देव्यश्च वलिचञ्च राजधानी वास्तव्यैः असुरकुमारैः देवैः, देवीभिश्च तामलेः बालतपस्विनः शरीरकं डील्यमानं, निन्द्यमानं यावत् - आकर्षविकर्षकं क्रियमाणं पश्यन्ति, दृष्ट्वा आसुरुताः, (तालेति) मारा पीटा (परिवहति) बहुत बुरी हालत की ( पञ्चति) उठा २ कर उसे खूब पटका (आकढ विकढ करेंति) और इधर से उधर उसे मनचाहा घसीटा (हीलेत्ता जाव आकविर्काडू करेत्ता एगंते एडंति) इस प्रकार उसकी हीलना आदि द्वारा बहुत बुरी दुर्दशा करके फिर उन्होंने उसे किसी एकान्त स्थान में फेंक दिया (जामेव दिसिं पाऊभूया तामेव दिसि पडिगया) फेंक फांक कर फिर वे जहां से आये थे वहां चले गये । (तपणं से ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवाय देवीओ य बलिचंचा रायहाणिवत्थव्वएडिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य) इसके बाद ईशानकल्पवासी अनेक वैमानिक देवोंने और देवियोंने बलिचंचा राजधानीके निवासी अनेक असुरकुमार देवोंके द्वारा और देवियोके द्वारा (तामलिस्स बाल तवस्सिस्स सरीरयं ) बालतपस्वी तामलिका शरीर ( हीलिजमाणं निंदिज्जमाणं जाव आकड चिक कीरमाणं पासंति) हील्यमान निन्द्यमान यावत् आकर्ष विकर्षक किया जाता जब देखा तो (पासित्ता) देखहिया भार भार्यो, [परिवर्हेति] तेनी हुन खुशे हशा उरी [पव्र्हेति] आयडी GAश्रीने तेने वारंवार नीचे पछाड [आकड विकाङ्क्ष करेंति] तेभनी ४२ प्रभा तेने आम तेम ढसयुं [ हिलेत्ता जाव आकड विकडू करेता एगंते एडंति ] આ રીતે તેની હિલના આદિ દ્વારા ઘણીજ ખુરા દશા કરીને તેમણે તેને કોઈ એકાન્ત या रेडी हीधु [जामेव दिसि पाउन्भूया तामेत्र दिसिं पडिगया ] त्यार मा તેઓ જ્યાંથી આવ્યા હતા ત્યાં (અલિચંચામાં) પાછા ફર્યાં, [तएण से ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य वलिचचारायाणवत्थवहिं हहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिं य] त्यार नाई ઇશાનકપનિવાસી અનેક દેવા અને દૈવિયેએ, અલિચચા રાજધાનીના અસુરકુમાર દેવા માદ देवियो द्वारा [तामलिस्स घालतवस्सिस्स सरीरयं] मास तपस्वी तामसीना शरीरने [हिलिज्जमाणं निंदिज्जमाणं जाव आकङ्क्षविकडूिं कीरमाणं पासंति] तिरस्कृत तु
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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