SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मगवतीको सर्वदिकोणेपु 'ठिया' स्थित्वा, दिव्यां देवद्धिम् विशिष्टविमानपरितोगदिपार देवद्युतिम् , विशिष्टशरीराभरणादिममामास्वररूपाम दिव्यं देवानुभागम् अचिन्त प्रभानयुक्तम् 'दिव्यंवनीसविहं नविहं उपदंसें नि' दिव्यं द्वारिंशदविध नाटयविधिश्च उपदर्शयन्ति 'उनदेसिला' उपदर्श उपर्युक्तदेवद्ध दिनाट्यकला प्रदर्शनानन्तरं ते अमुरकुमारदेवाः देयश तामलिं बालतपस्विनम् 'तिवखुत्तो' त्रिवारम् "आपाहिणं पयारिणं' आदक्षिणपदक्षिणम् 'फरेंनि' कुर्वन्ति अन लिपुटं बद्धा तं बद्धाञ्जलिपुटं दक्षिणकर्णमूलतः आरभ्य ललारपदेशेन यामकर्णावह स्थान सपक्ष है। सपक्ष पद से यहां चारों दिशाए ग्रहण को गई है। तथा 'सप्रनिदिशम् ' पद से इस व्युत्पति के आधार से कि "जिस स्थान में ईशान, आग्नेय, नैत्य और वायव्य ये चार कोणे समान हों ये ईशानादि ग्रहण किये। 'ठिचा' ऊपर में चारों दिशाओं में और चारों कोनों में खडे होकर उनसबने पहिले तो 'दिव्वं देविडि, दिवं देवज्जुई' विशिष्ट विमान परिवार आदि रूप दिव्य देवद्धिका, विशिष्ट शरीराभरण आदि की प्रभासे भास्व. ररूप दिव्य देवद्युति का, अचिन्त्यप्रभाव से युक्त 'दिव्यं यत्तीसविहं नविहं' दिव्य ३२ प्रकार की नाटयविधिको दिखाया। 'उवदसित्ता' यह सब दिखलाकर के फिर उन असुरकुमार देवोंने और उनकी देवियोंने 'तामलिं घालतस्सि' घालतपस्वी उन तामली की ' तिखुत्ती' तीनवार 'आयाणिपयाहिणं करेंति' आदक्षिण प्रदक्षिणा की-इस आदक्षिणप्रदिक्षिणा में दोनों हाथों की अंजलि जोडो जानी है-की जाती है-बाद में उस अंजलि को दक्षिण कर्णमूल से प्रारंभ सत्रमा माला "सपक्खि" पहनेम सपक्ष थाय छ मन 'सपक्ष पहा बारे मुंभ्य हिशामा ७५ ४२वामांगावी छ. "सप्रतिदिशम" ५६धा यारे भूए। प्रह ४शया छ. "ठिच्चा" या हिशा भने न्यारे पूष्मा २२, रो, तभर पसा "दिव्य देविडि, दिव्वं देवज्जुई" विशिष्ट {मान परिवार मा३५ दिव्य दिया યુકત, શારીરિક કાનિત અને આભૂષણદિની પ્રારૂ૫ દિવ્ય દેવઘુતિ અને મહાપ્રભાવથી युत " दिव्वं बत्तीसविहं नहिं " ३२ प्र तिव्य नidisi तेमने मतावा मितव्य नाटया मतावान तम "तामलिं वालतवस्सि" मतपस्वी तामलिन “तिक्खुत्तो वार " आयाहिण पयोहिणं कति વિધિપૂર્વક વંદણ નમસ્કાર કર્યો. તેની વિર્ષિ નીચે પ્રમાણે છે. પહેલાં - અને હાથને જેને ” અંજલિ બનાવવામાં આવે છે. પછી જમણા કાનન મા
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy