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________________ म. टी. श.३ उ.१ सू.२२ बलिचंचाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थितिनिरूपणम् २३१ 'तिरिय तिर्यक् 'असंखेजाणं' असंख्येयानाम् 'दीपसमुदाण' द्वीपसमुद्राणां 'मज्ञ मज्झेणं' मध्यं मध्येन मध्यमध्यभागेन 'जेणेव' यत्रैव यस्मिन्नेव प्रदेशे 'जयदीवे दीवे जम्बूद्वीपोद्वीपः 'जेणेव' यस्मिन्नेव भागे 'भारहे वासे' भारतं वर्षम् भरतक्षेत्रम् 'जेणेव' यस्मिन्नेव प्रदेशे 'तामलित्तीनयरी' ताम्रलिप्ती नगरी, 'जेणेव' यस्मिन्नेव मदेशे 'नामलीमोरियपुत्ते' तामलिमौर्यपुत्रः बालतपस्वी आसीत् 'तेणेव' तस्मिन्नेव प्रदेशे अत्र सर्वत्र सप्तम्यर्थे तृतीया 'उवागच्छति' उपागच्छन्ति-समीपेआगच्छन्ति 'उवागच्छेत्ता' उपागम्य ताम्रलिप्तस्य बालतपस्विनः 'उप्पिं उपरि 'सपक्खि' सपक्षम् समानाः सर्व पक्षाः पार्थाः दक्षिणोत्तरपूर्वापराः यस्मिन् स्थाने तत् सपक्षम् चतुर्दिक्षु इत्यर्थः 'सपडिदिसि' सपतिदिशम् समानाः सर्वाः प्रतिदिशः ईशानाग्नेय-नैऋत्य-वायव्यकोणाः यस्मिन स्थाने तत् समतिदिशम् कारण वह दिव्य थी। सी उस दिव्य गति द्वारा तिर्यग्लोक के असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करते हुए-अर्थात् उनके बीचोंबीच से होते हुए 'जेणेव जंबूदीवे दीवे' जहां पर जंबूद्वीप नामका द्वीप था और 'जेणेव भारहे वासे' जहां भरतक्षेत्र है तथा 'जेणेव' और उसमें भी जिस स्थान पर 'तामलित्ती नयरी' तामलिप्सी नगरी थी, तथा उसमें भी 'जेणेव तामली मोरियपुत्ते' जहां पर बालतपस्वी मौयवंश के तामली तापस थे 'तेणेव उवागच्छति' वहां पर वे सब आये। 'उवागच्छित्ता' उनके पास आकरके वे सब 'तामलित्तस्स वालतवस्सिस्स उप्पि' बालतपस्वी उन तामली के ऊपर में 'सपक्खि' चारों दिशाओं में 'ममडिदिसिं' चारों कोनों में खडे हो गये। जिस स्थान में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिमरूप सब पाच समान हो દિવ્ય હતી. આ પ્રકારની દિવ્ય ગતિથી તિર્યકના અનેક દ્વીપસમુદ્રોની पश्येथा ५सार यन "जेणेव जंबदीवे दीवे" rmi भूद्वीप नामना दीप sal, "जेणेव भारहवाम' मा या तत्र तु, " जेणेव तामलित्ती नयरी" भने तेभ यi dilaal नगरी ती, "जेणेव तामली मोरियपुत्ते" या माय शना adveी तामति पायोपरामन था॥ ४२वा हता, " तेणेव उवागच्छंति" त्या ते सौ मसु२४मा२ हेवे। मन हेवियो माया. "उवागच्छित्ता" तमनी पासे भावीन ते सो "तामलित्तस्स घालतवस्सिस्स उपि" ते मानत५२वी तामलिनी ५२ "सपक्वि" पूर्व पश्चिम, उत्तर भने क्षिय हिशामामा भने "सपडिदिसिं" ULT, अभि नेय भने वाय०य अभi SRI RA या मा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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