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________________ म. टी. श.३ उ.१ सू.२२ वलिचंचाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थतिनिरूपणम् २२५ देवानुप्रियाः ! वलिचश्चाराजधानीम् आद्रियध्वम्, परिजानीत, स्मरत, अर्थ . यध्नोत, निदान प्रकुरुत, स्थितिप्रकल्प प्रकुरुत, ततो यूयं कालमासे कालंकृत्वों चलिचञ्चाराजधान्याम् उत्पत्स्यध, ततो यूयम् अस्माकम् इन्द्रा भविष्यथ, ततो यूयम् अस्माभिः सह दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरिष्यथ ॥१० २२॥ इंदाहिटिया इंदाहीणकना) हे देवानुप्रिय ! हम सब इन्द्र के अधीन होकर रहनेवाले हैं, इन्द्र के सहारे से रहनेवाले है, इन्द्र के आधीन ही हम सब का कार्य होता है, (तं तुम्मेणं देवाणुप्पिया! वलिचंचा. रायबाणि आढाइ) इस कारण हे देवानुप्रिय! तुम चलि चंचाराजधानो का आदर करो। (परियाणह) उसका स्वामिपना स्वीकार करो (स्तुमरह) उसको अपने मन में लाओ (अवंधह, निदानं पकरेह) उस संबंध में निश्चय करी उस पद की प्राप्ति निमित्त निदान करो। (ठिइप्पकप्पं पकरेह) और बलिदांचाराजधानी के स्वामी होने का सं. कल्प करो। (तएणं तुन्भे कालमासे कालं किचा बलिचंचारायहाणीए उपजिस्सह तएणं तुम्भे अम्हं इंदा भविस्मह) जो तुम हमारे कहे अनुसार यदि करोगे तो काल अवसर काल करके बलिचंचा राजधानी में उत्पन्न हो जाओगे वहां उत्पन्न होने के बाद फिर आप हमारे नाथ बन जाओगे । (तएणं तुम्भेअम्हेहिं सद्धिं) हमारे इन्द्र बनकर तुम हम लोगोंके साथ (दिवाई भोगभोगाईभुजमाणा विहरिस्सह) दिव्य भोगोंको भोगते रहोगे ॥ इंदाहिणा दाहिटिया, इंदाहिणकज्जा] वानुप्रिय ! ममे सौ पन्द्रने माधान २वना छीमे, 1l माशानुसार ४१ ४२॥२॥ छोय. तिं तुम्भेणं देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी आढाइ] त पानुप्रिय! मा५ सियया धानाना मा६२ ४१, [परियाणाह] मा५ तेनु साधिपत्य स्वास. सुमरहामा मतिययानु माधिपत्य स्वी४२पानी भनमा निश्चय 3. अद्रवंधह, निदानं पकरेह मे प्रार। निश्चय ४१२ ते पहनी प्राति भाट निया मांधी, [ टिप्पकप्पं पकरेह ] मलियया यानीना - मनपान ४५ ४. [ तरण तुम्मे कालमासे कालं किच्चा चलिग रायहाणीए उपजिसह तएणं तुब्भे अम्हं इंदा भविस्सह] જો તમે અમારા કહેવા પ્રમાણે કરશે તે મૃત્યુને અવસર આવતા કાળધર્મ પામીને બલિચંચા રાજધાનીમાં ઉત્પન્ન થશે. ત્યાં ઉત્પન્ન થઈને આપ અમારા ઈન્દ્ર બનશે. [तएणं तुम्भे अम्हेहि सिद्धिी सभा। छन्द्र पनीर, मा५ अभारी साथै | दिव्याई __भोगभोगाई अजमणा विहरिस्सह हिव्या मावशी.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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