SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ दिव्यं द्वात्रिंशविध नाटघरिधिम् उपदर्शयन्ति, तामलिं बालतपस्विनम् विकता: आदक्षिगमदक्षिणं कुन्ति, गन्दन्ते, नमस्यन्ति (मन्दिरसा नमस्थिस्वा) ए. मवादिपुर-एवं खलु देवानुप्रियाः ! वयं पलिनधारामधानीवास्तव्याः बा. योऽमुरकुमाराः देवाश्च देव्या देवानुमियं धन्दामहे, नमस्यामः, यावत्-पयुपास्मा, अस्माकं देवानमियाः ! यलिवचारामधानी अनिन्द्रा, अपुरोहिता, वयम् अपिच देवानुमियाः ! इन्द्राधीनाः, इन्द्राधिष्ठिताः, इन्द्राधीनकार्याः, तद यूप से युक्त (दिव्यं यत्तीसविहं नपिई उचदंसनि) दिन ३२ प्रकार की नाटयकला को उसको दिखलाया। बाद में (तामलिं बालनवस्सि) उस घालतपस्वी तामली की (तिक्खुत्तो) तीन पार (आयाहिणं पाहिणं करें ति)प्रदक्षिणा की। (वंदति) उसकी चंदना की (नमंसंति) नमस्कार किया (एचंचयासी) चंदना नमस्कार कर फिर उन्होंने उससे इस प्रकार कहा- (एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे पलिचंचा रायहाणी वत्धन्यया पहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाणुपियं चंदामो) हे देवानुः प्रिय ! हम पलिचंचा राजधानी के निवासी अनेक असुरकुमारदेव और देवी आप देवानुप्रियको चंदना करते है। (नमंसामो) नमस्कार करते है। (जाव पज्जुवासामो) यावत आपकी सेवा करते हैं । (अ. म्हाणं देवाणुप्पिया बलिचंचा रायहाणी) हे देवानुप्रिय ! हमारी थलि. चंचाराजधानी इस समय (अजिंदा अपुरोहिया) इन्द्र से रहित और पुरोहित से रहित बनी हुई है (अम्हे वियणं देवाणुप्पिया इंदाहीणा (दिव्यं वचोसविहं नविहं उपदंसेति) मेवi 3२ अाना हय भने मताव्या. त्या२ मा (तामलिं मालतवस्सि) ते पालतपसी तामसिनी (तिक्खुत्तो आयाडिण पयाहिणं करेंति) पा२ प्रक्षिा ४\, (वंदति) तेन ! ४२री, (नमसंति) नमा२ या ( एवं व्यासी) प नभ२४२ ४ीन ते असुर भार वामे तेमने या प्रमाणे ह्यु (एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हें बलिचंचा रायहाणी वस्यव्वया बहवे असुरकुमार देवा य देवीओ य देवाणुप्पियं वंदाओ) હે દેવાનુપ્રિય! અમે બલિચંચા રાજધાનીમાં રહેનારા અનેક અસુરકુમાર રે અને हेवाव्या मा५ महाशयन वा शय छामे, (नमंसाओ) नमः४२ ४शये की, जाव पज्जुवासामो] ममे आपनी से। शये छीये. [अम्हाणं देवाणप्पिया पलिचंचा रायहाणी अजिंदा अपुरोहिया ] हे देवानुप्रिय! भारी मतिया शथानी छन् भने पुरोहित विनानी छ. [अहें वि य. देवाणुप्पिया
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy