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________________ - - स्निग्धतारहितत्वात् बुभुक्षितः आहाररहितस्यात् निर्मास आहाग्वजनेन मांसो. पचया भावात निःशोणितः शुष्कशोणितत्वात, किटिफिटिकाभूतः निर्मासास्ति सम्बन्धि उपवेशनादिक्रियानन्यातिशयास्थिननितकिट किट' इति सन्तयुक्ता अग्यिवर्मापनद्रः. चर्ममात्रायनद्रास्थियुक्तः, कशः दुर्वल; पतनुशरीर इत्यर्थः । 'तएणं ततःवलु 'तम्रा तामलिस्स' तस्य तामले: 'बोलनस्सिस्स पालनपम्बिनः 'अन्नया कयाई अन्यदा कदाचित् कस्मिंश्चित्समये 'पुजरनावान कालसमयमि' पूर्वरात्रापररात्रकालमंमये रापूर्वमागे पनामागे च 'अणि में रम नहीं रहने के कारण यह शुष्क हो गया, स्निग्धता से रहित होने के कारण वह रुक्ष हो गया, आहार करने का त्यागकर दिया होने के कारण वह घुभुक्षित हो गया, आहार के बिना मामोपचय होना नहीं है अतःवह मांस से शुन्य बन गया. शरीर का खून सुग्व जानेसे वह शोणित रहित हा गया केवल शरीर में हाहुया का मनुष्याकार में ढांचामान पाको पचा रहा सो जब वह चलता, उठना, बैठता आदि कियाएँ करता नर उसके शरीर में से हडिया की आपस की रगड से "किट किह" शब्द निकलने लग गया। इम तरफ वह चर्ममात्र से अवनद्ध अस्थिवाला होता हुआ शरार से बिलकुल पतला हो गया। 'तएणं' जब उनकी शारीरिक स्थिति इस प्रकार की हो गई तब 'तस्म तामलित्तम्स चालतपस्सिम्म' उसबालनपस्वी तामलिप्त के 'अन्नया कयाई किसी एक समय 'पुन्वरत्तावरन्तकालसमयंसि' रात्रिके मध्यभाग में, जब कि वह શરીરમાં રસ નહીં રહેવાને કારણે તે સૂકાઈ ગયું. સ્નિગ્ધતાને અભાવે તે રૂક્ષ થઈ ગયું તેમણે આહાથનો ત્યાગ કર્યો હોવાથી તે દુષ્કાળ પીડિત વ્યક્તિના શરીર જેવું થઈ ગયું. આહાર વિના માંસનું બંધારણ થતું નથી, તેથી તે માંસાન્ય શરીર તદ્દન દુર્બળ લાગવા માંડયું. શરીરમાં રકત પણ નહીં રહેવાથી તે શરીર હાડ ચામના માળાઓ જેવું બની ગયું. ઉઠતા, બેસતા અને ચાલતા તેમના હાડકાના સાંધાઓ ઘસાવાથી “કટ-કટ” શબ્દ થવા લાગ્યું. આ રીતે એકલા હાડપિંજર પર લાગેલી ચામડી ते शरीर तन हुमणु अन नि वा मयु. "तएणं"6 तपस्याने કારણે જયારે તેમની શારીરિક સ્થિતિ આટલી બધી નબળી પડી ગઇ ત્યારે "तस्स तामलित्तस्स बालतबस्सिस्स" ते माती तामसिन "अभया कयाई" is an समय " पुचरत्तावरत्तकालसमयंसि" - नि मनाने यारे a
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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