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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ सु. २१ तामलीकृत पादपोपगमनं २०५ छाया - ततः खलु स तामलिमौर्यपुत्रः तेन उदारेण विपुलेन, प्रयत्नेन मगृहीतेन बालतपःकर्मणा शुष्कः रूक्षः यावत्-धमनी संततो जातश्वापि अभवत्, ततःखलु तस्य ताम्रलिप्तस्य बालतपस्विनः अन्यदा कदाचित पूर्वरात्राऽपररात्र कालसमये अनित्यजागरिकां जाग्रतः अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिकः चिन्तितः 'तएण से तामली मोरियपुते' इत्यादि । सूत्रार्थ - (तपणं) प्राणामिकी प्रवज्या धारण करने के बाद ( से तामिली मोरियपुत्ते) वह तामली मौर्यपुत्र ( तेणं ओरालेणं विडले ' पत्ते, पग्गहिएण घालतचोकम्मेण ) उस उदार, विपुल, प्रदत्त और प्रगृहीत बालतपः कर्मसे ( सुक्के लक्खे, जाव भ्रमणिसंतए जाए याविहोत्था) शुष्क हो गया- सूख गया, रूक्ष हो गया-रूखे शरीरवाला बन गया, यावत् उसके समस्त शरीरकी नशें बाहर निकल आई ऐसा यह कृश-दुबला पतला हो गया (तएणं तस्स तामलित्तस्स बालतवस्सिस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अणिच्चजागरिगं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए, चितिए जाव समुप्पज्जित्था ) एक दिनकी बात है कि जब वह रात्रि के पीछले भाग में अनित्यता संबंधी विचार करने में लगा था तव उस बालतपस्वी ताम्रलिप्तके मनमें इस प्रकारका विचार उत्पन्न हुआ; यह विचार उसे आत्मामें हुआथा अतः वह आध्यात्मिक था विचार होते समय वह केवल विचार रूपमें ही " तरणं से तामली मोरियपुत्ते " ४त्याहि सूत्रार्थ - (तरणं) आमिडी अवन्या सीधा पछी से तामली मोरियपुत्ते ते भौर्य मुसोत्यन्न तामसी (तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं, पग्गहिएणं बालतत्रो कम्मेणं) ते हार, वियुस, अत्त भने अगृहीत मासतः उर्भर्थी (सुक्के लुक्रसे जाव धमणिसंतए जाए यात्रि होत्या) सूझ गयो, तेनुं शरीर लूभु सूडुं मनी ગયું. તે એટલે બધે દુખળા થઈ ગયા કે તેના શરીરની "ધી નસે દેખાવા માંડી. (तपणं तस्स तोमलित्तस्स वालतवस्सिस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकाल - समयंसि अणिच्चजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए, चिंतिए जाव समुपज्जित्था ) मे हिवस मेवं मन्युं } ते शत्रिना पछिला भागभां शरीर माદિની અનિત્યતા સંબંધી વિચારે ચડી ગયો. ત્યારે તે ખાલતપસ્વી તામલીના મનમાં આ પ્રકારના માધ્યાત્મિક, ચિન્તિત, કલ્પિત, મને ગત વિચાર ઉદભવ્યો. તે વિચાર તેના આત્મામાં ઉપજ્યો હતા તેથી તે વિચાર માટે આધ્યાત્મિક વિશેષણુ યોગ્ય છે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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