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________________ - - १४६ भगवतीको शरीरैः 'अट्ट' अष्टौ केवलकप्पे' केवलपल्पान संपूर्णान् जम्यूटीपान भ्याएं समर्थाः। एवं तथैव 'संतएपि' लांतकेऽपि बोध्यम् , एतावता लान्तकदेवो. ऽपि पूर्ववदेव समृद्धयादिशाली स्वसामोनिकादिदेवोपरि स्वसत्ताधिपत्यादिक कुर्वन् दिव्यान भोगान भुआनो विहरति, एवं तदीयसामानिकादिदेवा अपि योध्याः, केवलं 'नवरं' विशेषता तु तम्य पूर्व देवापेक्षया इयमेव यत् 'सातिरेगे' सातिरेकान साधिकान् 'अट्ठकेवलकप्पे' अष्टौ केवलपल्पान् जम्बूद्वीपान पूर यितुं विकुर्वणाशक्त्या क्रियनिजात्मविविधरूपनिर्माणसमयः । एवं महामुक्के' महाशुफ्रेऽपि पूर्ववदेव बोध्यम् , अर्थात् महाशुकदेवस्यापि तदीयसामानिकादेव निक आदि देव 'अट्ठकेवलकप्पे अपनी चिकुर्वणा शक्ति से निष्पक्ष अनेकरूपों द्वारा आठ जंबूदीप जैसे विस्तृत स्थान को पूर्णरूपसे भर सकते हैं । 'एवं लंतए वि' इसी तरह लान्तक देवलोकवामी इन्द्र उसके सामानिक देव आदि सब ही पहिले की तरहसे ही समृद्धि आदिशाली हैं । वह लान्तक इन्द्र अपने सामानिक देवों आदिके ऊपर स्वाधिपत्यादिक करता हुआ दिव्य भोगोको भोगता रहता है। परन्तु इसकी विकुर्वणा शक्तिका क्षेत्र पहिले के देवादिकों की अपेक्षा कुछ अधिक आठ जंबूद्वीपों को भर सकते हैं यही यात 'नवरं अहकेवलकप्पे' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है। तथा 'महास्सुक्के सेोलस केवलकप्पे इम सूत्र पाठ द्वारा यह प्रदर्शित किया गया हैं कि महाशक देवकी और उसके सामानिक देव आदिकों की समृद्धि आदिक सब पहिले की विशेषता छ त नाय प्रमाणे छ- "अकेवलकप्पे" alsन्द्र तथा तेना સામાનિક આદિ દેવે વિદુર્વણુ શકિતથી નિર્મિત વિવિધ રૂપે વડે પૂરા આઠ द्वीपमा स्थानने मशवाने समर्थ छ. "एवं लंतए वि" alds 8. લકને ઇન્દ્ર તથા તેના સામાનિક આદિ દેવ પણ એટલી જ સમૃદ્ધિશાળી છે. તે લાતક દેવલોકને ઈન્દ્ર તેના સામાનિક આદિ દેવે પર આધિપત્ય, સ્વામીત્વ આદિ ભગવતે શકે, અનેક દિવ્ય ભેગે ભેગવ્યા કરે છે. બ્રહ્મલેકના ઈન્દ્ર કરતા લાન્તકના ઈન્દ્રની વિકર્વણ શકિતમાં જે વિશેષતા છે તે નીચેના સૂત્રમાં પ્રકટ કરી છે"नवरं सातिरेगे अह केवलकप्पे" alra: पक्षाने धन्द्र तथा तेना साभानि આદિ દેવો તેમની વિમુર્વણ શકિતથી નિમિત રૂપે વડે આઠ જંબદ્વીપ કરતાં પણ पधारे याने मरी पाने समय छे. " महामुक्के सोलसकेवलकप्पे " મહાશુક્ર દેવલોકના ઈન્દ્ર તથા તેના સામાનિક આદિ દેવે પણ એટલા જ સમૃદ્ધિશાળી
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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