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________________ १२६ भगवतीसूत्रे कर्ण्य टीका - वायुभूति : ईशानेन्द्रस्य महर्द्धयादिकं भगवतः सकाशात् सम्यगांतदीयसामानिकदेवविशेषकुरुदत्तपुत्रसम्बन्धिसमृद्धयादिजिज्ञासा भगवन्तं पृच्छति - ' जणं भंते । इत्यादि । हे भगवन ! यदि खलु 'ईसाणे देविंदे ईशाननामको देवेन्द्रः ' देवराया देवराज: ' एवं महिडीए' एवं महर्द्धिकः पूर्ववर्णितविलक्षणसमृद्धिशाली 'जान-एवइयं च णं पभू विङवित्तए' यावत् - एतावच्च खलु प्रभुः विकुर्वितुम् पूर्ववर्णितानुसारं वैकियसम घातेन समवहत्य विविधरूपनिर्माणद्वारा जम्बुद्वीपादिकं पूरयितुं समर्थः, याच्छन्दस्य पूर्वपदेवार्थी बोध्यः, तदा ईशानेन्द्रसामानिकदेव कुरुदत्तपुत्रः कियह जानना चाहता हूं कि वे कितनी बडी ऋद्धिवाले है- कितनी विक्रिता करने की शक्तिसे युक्त है ? | टीकार्थ- वायुभूति ईशानेन्द्रकी महर्द्धि आदि सम्बन्धी बात को भगवान् श्रीमुख से अच्छी तरह ज्ञातकर अब उनसे ईशानेन्द्रके जो सामामिक देव कुरुदत्तपुत्र हैं उनकी समृद्धि आदि कैसी क्या है इस बातको जानने की इच्छासे यह पूछ रहे है कि- 'जइणं भंते!" हे भदन्त ! यदि 'देविंदे देवराया ईसाणे एवं महिड़ीए' देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी बडी ऋद्धिवाला है कि जैसा इस विषयका वर्णन पहिले किया जा चुका है तथा - 'जाव एवइयं चणं पभू विकुव्वितए' पूर्ववर्णित पद्धति के अनुसार घावत् वह चेक्रियसमुद्धात से युक्त होकर विविध रूपोंके निर्माण द्वारा जंबूखीपादिक को भर सकने के लिये समर्थ हैं (यहां यावत् शब्दका अर्थ पहिले शकेन्द्र के प्रश्नमें વર્ણન તિષ્યક દેવ પ્રમાણે જ સમજવું, તે તે પુરુદત્ત પુત્ર કેવી મહાન સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે? તે કેવી વિધ્રુણા કરવાને સમર્થ છે? ટીકા”ઇશાનેન્દ્રની સમૃદ્ધિ, વિષ્ણુ ણા આદિની વાત ભગવાન મહાવીરના સુખે શ્રવણ કરીને, વાયુભૂતિ અણુગાર ઈશાનેન્દ્રના સામાજિક દેવ કુરુદત્તપુત્રની સમૃદ્ધિ माहि लघुवानी निज्ञासाथी तेभने नीनो प्रश्न पूछे छे - "जडणं भंते ! लहन्त ! "देविदे देवराया ईसाणे एवं महिड्डीए" हेवेन्द्र, हेवशन ईशान भारसी लारे સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત (તેની સમૃદ્ધિ વગેરેનું વર્ણન આગળ આવી ગયું છે), " जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए" अने ते पोतानी विधुवा शक्ति द्वारा ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપે વડે જખૂદ્રીપ તથા દ્વીપ સમુદ્રોને ભરી શકવાને સમર્થ છે (અહીં 'यावत्' द्वारा राजेन्द्रना अशुभ या अारना प्रश्नना उत्तरभां भावेसी समस्त
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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