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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ इशानेन्द्रऋद्धिविपये वायुभूतेः प्रश्नः ११५ गोत्रीयः 'चायुभूई' वायुभूतिनामा 'अणगारे' अनगारः 'समणं भगवं' श्रमणं भगवन्तम् 'जाय-एवं बयासी' यावत्-एवं वक्ष्यमाणमकारेण अवादी--अकथयत्, यावत्, इतिशब्देन सविनयपर्युपासनादि शिष्टाचारो गम्यते, 'जणं' यदि खलु यदाहि 'भंते ! भगवन् ! 'सक्के देविदे शको देवेन्द्रः, 'देवराया' देवराजः ‘एवं मड्डिीए' एवं मर्द्धिकः, यथोक्तमहासमृद्धिशाली, 'जाव-एवइयं च णं' यावत-एतावच खलु निश्चयेन पूर्ववर्णितावधिक 'पभू विउवित्तए' प्रभुविकुर्वितुम् - विकुर्वणां कर्तुं समर्थ इति भावः, यावच्छन्देन महाद्युतिवलख्यातिसौख्यादि घोतनपूर्वकं विकुवणाशक्तया वैक्रियक्रियया नानारूपनिर्माणद्वारा जम्बूद्वीपादि परिपूरणस्य यथोक्तशक सामा गम्यते, तदा-इसाणेणं भंते ! त्ति, हेभदन्त ? इत्यादि- सो हे भदंत ! इस प्रकारसे प्रभुको आमंत्रित करके पूछा'ये वायुभूति 'अणगारे' अनगार 'तईए गोयमे' तृतीय गौतम थे । अर्थात् तीसरे नम्बरके गणधर थे और इनका गोत्र गौतम था । इन्होंने किनसे इस विपयमें पूछा- सो इस यातको स्पष्ट करने के लिये सूत्रकारने 'समणं भगवं' यह सूत्र पाठ रखा है इसका तात्पर्य यह है कि उन्होंने श्रमण भगवान महावीर से ही पूछा- अन्यसे नहीं । 'जाव एवं चयासी' में जो यह यावत्पद आया है-वह यह प्रकट करता है- कि प्रभुसे उन्होंने जब इस प्रश्नको पूछा- तब बडे विनयके साथ ही पूछा- और पूछते समय उन्होंने प्रभुकी मन वचन और कायसे अच्छी तरहसे पर्युपासना को- इस तरह शिष्ट आचार के अनुसार ही उन्होंने प्रभुसे पूछा । क्या पूछा? इस विषयको स्पष्ट करने के लिये सूत्रकार कहते है 'जणं भंते ! सक्के देविंदे देवराया के महिड्डीए जाय एवइयं च णं पभू विउवित्तए, ईसाणेणं भंते ! देविंदे देवराया के महिडीए' कि यह पूछा- इस का HE-!" मे प्रभारी समाधान शन, 'समणं भगवं महावीरं जाव एवं चयासी' મન, વચન અને કાયાથી મહાવીર પ્રભુની પJપાસના કરીને-શિષ્ટાચાર પૂર્વક–વિનમ્ર ભાવથી, વાયુભૂતિ અણગારે મહાવીર પ્રભુને નીચે પ્રશ્ન પૂછયો. વાયુભૂતિ અણગાર મહાવીર સ્વામીના ત્રીજ ગણધર હતા. અને તેમનું ગોત્ર ગૌતમ હતું. માટે તેમને “ત્રીજા ગૌતમ કહ્યા છે. (પહેલા ગૌતમ ઈન્દ્રભૂતિ, બીજા ગૌતમ અગ્નિભૂતિ અને ત્રિીજા ગૌતમ વાયુભૂતિ હતા) હવે તેમણે શું પૂછયું તે સૂત્રકાર નીચેના સૂત્ર દ્વારા मता छ- जहणं भंते । सक्के देविंदे देवराया के महिडीए जाव एवइयं च णं पभु विउवित्तए, ईसाणेणं भते ! देविदे देवराया के महिड्डीए" 3.E-1 !
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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