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________________ भगवतीम्र ११४ टीका -- वायुभूतिनामा अनगारो भगवतः सकाशात् शक्रेन्द्रस्य समृद्धयादिवर्णनं संश्रुत्य औदीच्येशानेन्द्रस्य महर्द्धिविकुर्वणादिकं पृच्छति 'भंते ! ति भगव' इत्यादि । हे भदन्त ! 'ति' इति शब्दस्य 'भदन्त' इति नाम्ना मर्भु सम्बोध्य इत्यर्थः, 'भगवं' भगवान् 'तच्चे गोयमे' तृतीयो गणधरो गौतम के महिड़ी- एवं तहेब नवरं साहिए दो केवलकप्पे जंबूदीचे दीवे अवसेसं तहेच) जो देवेन्द्र देवराज ईशान है वह कितनी बड़ी ऋद्धिवाला है इत्यादि सब पहिले की तरह इसके विषयमें उन्होंने प्रभु से पूछा- तप प्रभुने हम प्रश्न के उत्तरमें जो उन्होंने कहावह इस प्रकार से है- हे गौतम ! इस सम्बन्धमें समस्त वर्णन पहिले किये गये शन्द्र के वर्णन जैसा ही जानना चाहिये । परन्तु उस वर्णनमें और इस वर्णनमें जो अन्तर है वह इतना ही है की शकेन्द्र अपनी चिक्रिया द्वारा निष्पन्न हुए अनेक रूपोंसे दो पूरे जंबूद्विपको सम्पूर्ण रूपसे भर सकता है और यह ईशानेन्द्र जो कि उत्तर दिशाका अधिपति है कुछ अधिक दो जंबूद्वीपोको भर सकता है । बाकी का और सब कथन पहिले शकेन्द्र के विषय में किये गये कथन के समान ही है ॥ टीकार्थ- वायुभूति अनगारने भगवान से शक्रेन्द्र की समृद्धि आदिका वर्णन सुनकर उत्तर दिशा के अधिपति ईशानेन्द्रकी महर्द्धि और विकुर्वणाशक्तिके विषय में जो उनसे पूछा- 'भंते । ति भगवं' देविंदे देवराया के महिङ्गीए एवं तहेव नवरं साहिए दो केवलकप्पे जंबूदीचे दीवे अवसेसं तहेब) देवरान, देवेन्द्र, ईशान देवी समृध्धिवाणी छे, ઇત્યાદિ સમસ્ત પ્રશ્ન પહેલાંની જેમ જ પૂછવામાં આવે છે. મહાવીર પ્રભુ તેને આ પ્રમાણે જવાબ આપે છે-“આ વિષયમાં સઘળું વર્ણન શક્રેન્દ્રના વર્ણન પ્રમાણે જ સમજવું. પણ તેમાં ફકત આટલી જ વિશેષતા છે. શક્રેન્દ્ર પેાતાના વૈક્રિય શક્તિથી ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપા વડે એ જદ્દીને ભરી શકે છે, પણ ઉત્તર દિશાને, અધિપતિ ઇશાનેન્દ્ર પેાતાની વૈક્રિય શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપો વડે એ જમૂદ્દી! કરતાં પણુ વધારે જગ્યાને ભરી શકવાને સમર્થ છે. ખાીનું સઘળું કથન શકેન્દ્રના કથન પ્રમાણે ४. ॥ सु. १३ ॥ ટીકા – મહાવીર પ્રભુની પાસેથી શકેન્દ્રની સમૃધ્ધિ આદિનું વર્ણન સાંભળીને, વાયુભૂતિ અણુગારે ઉત્તર દિશાના અધિપતિ ઈશાનેન્દ્રની સમૃદ્ધિ, શક્તિ આદિ लघुवानी निज्ञासाथी भहावीर अर्जुने; पूछयु — “भंते त्ति भगव धत्याहि" "ड
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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