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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३ उ. १ तिष्यकान्यसामानिकदेवऋद्धिवर्णनम् १११ वा' इत्यन्तम् । शब्दार्थः सरलः । अथ च शकस्य त्रायस्त्रिंशकाः, लोकपालाः अग्रमहिप्यश्व चमरवदेव बोध्या इत्याह-'तायत्तीसा य, लोगपाल-अग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स' 'नवरं विशेषः पुनरेतावानेव यत्-'दो केवलकप्पे' द्वौ केवल. कल्पो सम्पूर्णी 'जम्बूदीवे दीवे' जम्बूद्वीपी दीपी विकुर्वणाशक्त्या वैक्रियशरीरनिर्माणद्वारा पूरयितुं सामर्थ्य तेषां वर्तते । 'अण्णं तं चेव' अन्यत् तच्चैव, अन्यत्सर्वे चमरेन्द्रवद्विज्ञेयम् । उक्तरीत्या शकेन्द्रस्य तिष्यकवदन्येषामपि सामावे सम्पादन नहीं करते है । यही वात 'एस णं गोयमा! सकस्स' यहांसे लगाकर 'णोचेव णं संपत्तीए विकुव्विस्संतिवा' यहां तक के सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है शक्रके त्रायस्त्रिंशक, लोकपाल, अग्र महिपियां इन सबका वर्णन चमरेन्द्रके जैसा पहिले इनका वर्णन किया गया है वैसाही जानना चाहिये । यही यात 'तायत्तीसा य लोगपाल अग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स' इस मूत्रपाठसे मूत्रकारने प्रकट की है । “नवरं" परन्तु इस कथनमें जो चमरके कथनकी अपेक्षा विशेषता है वह इस प्रकारसे है- 'दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीचे अण्णं तं चेव चमर अपने वैकिय समुद्धात द्वारा निष्पन्नरूपों द्वारा केवल एक ही जंवृद्धीपको पूर्णरूपसे भर सकता है, परन्तु शक __ अपने वैक्रियसमुद्धात द्वारा निष्पन्न रूपोंसे पूरे दो जंबूद्वीपों को भर सकता है । इसके सिवाय अवशिष्ट और सय कथन चमरको तरहसे ही समझना चाहिये । इस तरह उक्त रीतिसे "शकेन्द्र के गोयमा सक्कस्स" था सन , चेव संपत्तिए विकुब्बिस्संति वा " સુધીના સૂત્રપાઠાં પ્રકટ કરી છે. " तायत्तीसा य लोगपाल अग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स " ईन्द्रना ત્રાયઅિંશક દેવે કપાલો અને પટ્ટરાણીની સમૃદ્ધિ તથા વિદુર્વણુ શકિતનું વર્ણન અમરેન્દ્રના ત્રાયશ્ચિશકે લોકપાલ અને ૫દરાઓની સમૃદ્ધિ, વિક્ર્વાણુ આદિના વર્ણન प्रभा १ सभv. ते वर्णन RI11 भावी आयु छ. " नवरं " ५ ते ४थनमा नायनी विशेषता मही सभापी. "दोकेवलकप्पे नंदीवे दीवे अण्ण तं चेव" ચમરેન્દ્રના ત્રાયશ્ચિશકે વગેરે વૈક્રિય સમુદ્ધાત દ્વારા ઉત્પન્ન કરેલા રૂપોથી એક જ જબૂદીપને પૂરે પૂરો ભરી શકવાને સમર્થ છે, પણ કેન્દ્ર ત્રિાયશ્ચિશકે, કપાલે અને પટ્ટરાણીએ વાક્રય સમહાત દ્વારા નિમિત રૂપથી બે જંબુદ્વીપને પૂરે પૂરા ભરી શકવાને સમર્થ છે. બાકીનું સમસ્ત કથન ચમરેન્દ્રના કથન પ્રમાણે જ સમજવું આ રીતે ભગવાને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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