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________________ १.१० भगवतीमो ढीए' किंमहर्दिकाः,फीदृशमादिशालिनी वर्तन्ते ! इनि सम्यग्ररूपेण मार वोधयतु भवान् इत्याशयः। ___ भगवान तिष्यकातिरिक्तशन्द्रसामानिकदेवानां समृद्धयादिसम्बन्धे अग्निभूतेः प्रश्नस्योत्तरमाह-तहेब जाव-सन्' इत्यादि । तथैव सर्वम्, यावत् तिप्यकवदेव सकलं, यथोक्तसमृद्धयादिविकुर्वणपर्यन्तम् अन्येपामपि शक्रसामानिकदेवानां योध्यमिति यावत्पदेन मुच्यते । किन्तु हे गौतमगोत्रीयामि भूते ! शक्रस्य एकैकसामानिकदेवस्य चिकुर्वणादिशक्तेः स्वरूपमात्रमेतावत् कथितम, वैक्रियसमुद्घातेन नानारूपैः जम्बूद्वीपादिकम् पूरयितुं सामथ्र्य वर्तते न तु व्यवहाररूपेण चैक्रियक्रियादारा यथोक्ताथै सम्पादयत्येव इत्याशयेनोह-'एसणं गोयमा! सकस्स' इत्यारभ्य 'णो चेच णं संपत्तीप-विकुन्निस्संति सामाणिया देवा' याकीके सामानिक देव है वे के महीडीए' कैसी महर्द्धिवाले है यह घात आप हमे अच्छी तरहसे समझाइए इस प्रकार तिष्यकसे अतिरिक्त शक्रेन्द्रके सामानिक देवांकी समृद्धि आदिके विषयमें अग्निभूति द्वारा पूछे गये प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभुने उनसे कहा- 'तहेव जाव सव्वं हे अग्निभूते! जैसा समृद्धि आदिका वर्णन, विकुर्वर्णा शक्ति तक तिष्यक देवका किया गया है उसी प्रकारका शकेन्द्र के अन्य सामानिक देवांकी भी समृद्धि आदिका वर्णन जानना चाहिये । यही यात यहां 'जाव' इस पदसे सूचित की गई है । परन्तु हे गौतम! अग्निभते । शक्रके एक एक सामानिक देव विकुर्वणा आदि शक्तिका जो इस प्रकारसे यह वर्णन किया गया हैं कि वे वैक्रियसमुद्धातसे निष्पन्न हुए अपने अनेक रूपा द्वारा जंबूदीपादिकको पूर्णरूपसे भर सकते है सो यह वर्णन केवल इस प्रकारसे करनेकी उनमें शक्ति है यह प्रदर्शन करने के लिये ही किया गया है । देवों कि व्यवहाररूपसे वैक्रियद्वारा यथोक्त अर्थका सामाणिया देवा"२ माडीना सामानि । छे तमा “के महिढीए" वी મહાન સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે ? મહાવીર પ્રભુ તેને આ પ્રમાણે જવાબ આપે છે "तहेव जाव सव्वं तिष्य अपना व समृद्धिमा तथा विgu Alfa તે પ્રત્યેક સામાનિક દેવ પણ ધરાવે છે. પરંતુ હે ગૌતમ! તેમણે તે વિફર્વણને ભૂતકાળમાં કદી પણ પ્રયોગ કર્યો નથી, વર્તમાન કાળે પણ તેઓ તેને પ્રયોગ કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં પણ તેને પ્રયોગ કરશે નહીં ફકત તેમની વિકૃણા શકિત કેટલી છે ते सभावाने भाटे 'पत ४थन ४२वामा अायु पात" एसण
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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