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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ तिष्यकाणमारविपये गौतमस्य मश्नः ९७ संगृहीत 'दसनह' दशनखम् 'सिरसावत' शिरसाऽऽवर्तम् शिरसि प्रदक्षिणपरिभ्रमणं यस्य तम् 'मत्थए' मस्तके शिरसि 'अन्जलि' करसम्पुटं 'क' कृत्वा 'जएणं' जयेन जयशब्दोचारणेन 'विजएणं' विजयशब्दोच्चारणेन- 'वद्धानिति परिग्गयिं' दोनों हाथों को इस प्रकार से जोड़कर आते हैं कि जिससे उनके 'दसनह' दशों नख आपस में संमिलित हो जाते हैं । इस प्रकार वे दोनों हाथोंको 'अंजलिं कटु' अंजलि रूप में बनाकर और उसे 'सिरसावत्तं' मस्तक के उपर घुमाकर उसके पास में आये। वहां आकर उन्होने उसे 'जएणं निजरण' आपकी जय हो आपकी विजय हो 'वद्धाविति' इस प्रकार वधाई दी । शंका-सिद्धांत में पर्याप्तियां ६ छह प्रकार की कही गई हैं पर यहां ५ पांच प्रकार की कही गई हैं सो क्या कारण हैं ? उत्तर-ठीक है पर्याप्ति तो ६ छह ही होती है पर भाषा और मनपर्याप्ति इन दो पर्याप्तियों का देवों में घंध होता है इसलिये वहां ये इस अपेक्षा ५पांच ही कही गई है । जीव जिस शक्ति के दोरा आहार के पुजलों को ग्रहण करके उन्हे खल भागरूप से और रस भागरूप से जो परिणमाता है-उस शक्तिका नाम आहार पर्याप्ति है । जिस शक्तिरूप पर्याप्ति के द्वारा रसरूप से परिणत हुए आहार पुलों को जीव अपने शरीररूप में परिणमाता है उस प्राप्निका नाम आहारपर्याप्ति है । तथा खल पहना करयलपरिग्गहियं " तमना मन्ने डायनेस " दसन "-तमना मान्ने डायना ये नम से भीनने भजी जय मेवी शत अंजलिं कह" भवति३५ मनावाने भने तेनु "सिरसावतं" शि२ ५२ भावनि ४ तेमनी पासे मान्या त्या मानाने "जएणं विजएणं आपने भय , आपने विय ह,” मेवा ना साथ बदाविति"तभर ते२. मसिनहन -l. શંકા-સિદ્ધાંતમાં તે છ પ્રકારની પર્યાસિયો કહી છે. તે અહીં શા માટે પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિ કહી છે ? ઉત્તર-પતિયો છ હાય છે, તે વાત સાચી છે પણ દેવામાં મનપતિ અને ભાષાપર્યાપ્તિને એક જ બંધ હોય છે, આ દષ્ટિએ તેના છ ને બદલે પાંચ પ્રકાર કહ્યા છે. : જે શકિત વડે જીવ આહારના પદોને ગ્રહણ કરીને તેમને ખલભાગ રૂપે તથા રસભાગ રૂપે પરિણુમાવે છે, તે શક્તિને આહાર પર્યાતિ કહે છે. જે શકિતરૂપ પર્યાપ્ત દ્વારા રસરૂપે પરિણમેલાં આહાર રૂપ પબ્લેને જીવ પિતાના શરીર રૂપે પરિણુમાવે
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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