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________________ - MARA - - - भमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. १ तिप्यकाणगारविषये गौतमस्य प्रश्नः मतिक्रान्तः, समाधिप्राप्तः कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पे स्वस्मिन् विमाने उपपातसभायां देवशयनीये देवदूप्यान्तरितोऽङ्गलस्य असंख्येयभागमात्रायाम् अवगाहनायाम् शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य सामानिकदेवतया उत्पन्नः, ततः स विप्पको देवोऽधुनोपपन्नमात्रः सन् पञ्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभावं गच्छति, तद्यथा-आहारपर्याप्त्या, शरीर पर्याप्त्या, इन्द्रिय-पर्याप्त्या, आन-प्राणपर्याप्त्या, प्रतिक्रम करके (समाहिपत्त) समाधि प्राप्त होकर (काल मासे कालं किया) काल मासमें काल करके (सोहम्मे कप्पे) सौधर्मकल्पमें (सयंसि विमाणंसि) अपने विमानमें (उवधायसभाए देवसयणिजसि) उपपात सभाके देवशयनीय (शय्या) में (देव संतरिए) देवदृष्यसे अन्तरित होकर (अंगुलस्स असंखेजह भागमेनाए ओगाहणाए) अंगुलके असं. ख्यातवें भाग प्रमाणवाली अवगाहनामें (सकस्स देविंदस्स देवरपणी सामाणिय देवत्ताए उवचनो) देवेन्द्र देवराज शक्रके सामाणिक देवके रूपमें उत्पन्न हुए है। (तएणं से तीसप देवे अहुणोववन्नमत्ते समाणे) अधुनोपपन्न मात्र वे तिप्यकदेव (पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गच्छद) वहां पर पांच प्रकारकी पर्याप्तियोंसे प्राप्तिभावको प्राप्त हुए हैं। (तंजहा) वे पांच प्रकारकी पर्याप्तियां इस प्रकार से है- (आहारपजत्तीए, सरीरपजत्तीए, इंदियपज्जत्तीए, आणपाणपज्जत्तीए, भासामणपजत्तीए) आहारपर्याप्ति, शरीर(आलोइयपडिक्कते )uarrel तथा प्रतिभा शन(समाहिपत्ते) समाधि पाभीन (कालमासे काल किच्चा) arelal Raiना समय मा०ये त्यारे १५ धर्म पाभी ( सोहम्मे कप्पे ) सौधर्म समi( सयंसि विमाणंसि ) all भानमा ( उववायसभाए देवसयणिज्जसि) S५पासनी देवशय्यामा देवदूसंतरिए) प्य (देव नथी ) मछति धन अंगुलम्स असंखेज्जइ भागमेत्ताए ओगाहणाए) शुलना मसभ्यतममा प्रभावामी अनामी ( सक्कस्स देविंदस्स देवरपणा देवत्ताए उपचन्ने) ३५२२०४, ३३ ना सामान १५३५ उत्पन्न थये छे. (तएणं से तीसए देवे अहणोववन्नमेत्ते समाणे) 80 in a येततिभ्यः (पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छद ) त्यां ५५ ४२नी पालतमाथी पास्त अवस्था पाभ्येा छ(तंजहा ते पाय पाक्तियो ना प्रभार छ- (आहारपज्जत्तीए) भाडा पति , शरीरपज्जत्तीए शरी: पाति (इंदियपज्जनीए) छन्द्रिय पारित, (आणपाणपज्जत्तीए) PATRIसे पति, ( भासामणपज्जत्तीए) लामन याति ॥ शते
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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