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________________ - भगवतीक्षा शकसामर्थ्यादिकं प्रतिपाद्य तदीयोक्तसामर्यादिस्वरूपमात्रमदर्शनमुपसंहरवि 'एस गं गोयमा' हे गौतम ! एप खलु 'सपास शकस्य 'देविदस्स' देवेन्द्रस्य 'देवरणो' देवराजस्य 'इमेयारुये' अयम् एतावद्रूपी 'विसए' विषयः 'विसय. मेत्तेणं घुइए' विषयमा खल उक्तम्-प्रतिपादितम् 'नो चेव णं' नाव खलु नेत्र कथमपि 'संपत्तीए' सम्पत्त्या यधोक्तार्यसम्पादनेन 'विकृषिमुवा' या वैद् वा कदापि चिकुर्वणां कृतवान, 'विकुवतिया' वियरोति वा 'विकृविस्सति' विकरिप्यति वा, अर्थात् शकेन्द्रस्य विकर्षणाशतः म्वरूपमात्रमेतावत्मतिपादित नतु व्यवहारे विकुर्वणायाः कथमपि प्रयोगकरणम् गवनि इनि अग्निभूतिप्रति भगवत उत्तराशयः ।। मृ. ९ ॥ ___मूलम् -'जइ णं भंते ! सक्के देविंदे, देवराया एवं महिड्डीए, जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए, एवं खल्लु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी तीसए नाम अणगारे पगइभदए, जाव-विणीए, छठे छट्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे बहुपडिकह कर यह सामर्थ्य उसमें केवल कहने के लिये ही है वह अपनी इस सामर्थ्य का उपयोग नहीं करता है। यह प्रकट करते हुए कहते हैं 'एस गं गोयमा! सकस्स देविंदस्त देवरको इमेयारूवे विसए, नो चेच णं संपत्तिए विकब्धिस्सु वा, विकुन्चति चा विकुव्विस्सति वा' हे गौतम! यह जो उक्तरूप से देवेन्द्र देवराज शक्रकी शक्तिका वर्णन किया गया है वह सीर्फ स्वरूप मात्र प्रदर्शन के लियेही किया गया है। यथोक्तार्थ के सम्पादन से उसने आज तक उसे अपने व्यवहारमें प्रयुक्त नहीं किया है, नहीं करते है, आगे नहीं करेंगा, इस प्रकार भगवानने अग्निभूति से शफ्रेंन्द्रके विपयमें कहा ।सू.९॥ માટે જ કહી છે. ખરેખર તે તે તેની આ વિદુર્વણ શક્તિને કદી પણ ઉપગ કરતા नथी. मे पात नायन सूत्र वा ४८ छ-"एस णं गोयमा सकस्स देविंदस्स देवरण्णो इमेयारूवे विसए विसयमेत्ते णं बुइए नो चेव ण संपत्तीए विकविमु भाविकानति वा विकुन्विस्सति वा " . गौतम ! ७५२४ समरत ४थन દેવરાજ, દેવેન્દ્ર, શકની શકિત બતાવવાને માટે જ કરાયું છે. તેણે આજ સુધી કદી પણ તે વિકર્વિણ શકિતને પ્રવેગ કર્યો નથી, વર્તમાન કાળે કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં પણ કરશે નહીં. ભગવાને અગ્નિભૂતિ અણુગારના પ્રશ્નને આ પ્રમાણે જવાબ આપે (સૂ)
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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